इन दिनों पाकिस्तान की संसद में हज सब्सिडी को लेकर खूब हंगामा मच रहा है. बता दें पाक में सत्तारूढ़ इमरान खान की सरकार को हज सब्सिडी को खत्म करने के फैसले को लेकर विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. संसद में विपक्षी दलों ने हज के खर्च में 63 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के कदम को खारिज कर दिया है. जमात-ए-इस्लामी के सांसद मुस्ताक अहमद ने इमरान खान सरकार की हज नीति को लेकर निराशा जताई है. उन्होंने सरकार को यह भी याद दिलाया कि उन्होंने मुल्क को मदीना राज्य की तरह तब्दील करने का दावा किया था. सांसद ने कहा- ‘पूरा देश इस नई हज नीति को लेकर चिंतित है. सरकार को हज के खर्च में लोगों को थोड़ी राहत पहुंचानी चाहिए. खर्च में ज्यादा बढ़ोतरी से हज आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगा’.
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पिछले साल की अपेक्षा इस साल हुई बढ़ोत्तरी
गुरुवार को कैबिनेट ने हज नीति 2019 की घोषणा की जिसमें सरकारी स्कीम के तहत हज करने वाले लोगों को अब 4 लाख 56 हजार 4 सौ 26 रुपए (कुर्बानी सहित) चुकाने होंगे. जबकि पिछले साल प्रति व्यक्ति 2 लाख 80 हजार रुपए अदा करने पड़ते थे. मतलब कि अब हर व्यक्ति को हज के लिए 1 लाख 76 हजार 4 सौ 26 रुपए अतिरिक्त चुकाने होंगे. शुक्रवार को जमात-ए-इस्लामी के सांसद मुस्ताक अहमद ने इस कदम को ‘ड्रोन अटैक’ करार दिया और कहा कि हज यात्रा अब ‘सुनामी’ का निशाना बन गई है. उन्होंने अफसोस जताया कि सरकार ने हज जैसे धार्मिक मुद्दे पर फैसला लेने से पहले काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियालजी (CII) से भी परामर्श नहीं लिया. मुस्ताक ने कहा- ‘मदीना राज्य का सपना दिखाने वाली सरकार लोगों को मक्का और मदीना जाने से ही रोक रही है, जबकि इसी सरकार के पास सिनेमा पर खर्च करने के लिए अरबों रुपए हैं’. उन्होंने सुझाव दिया कि सिनेमा पर अरबों खर्च करने के बजाए सरकार को हज सब्सिडी देनी चाहिए.
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पीपीपी नेता ने किया संसद से वॉकआउट, केंद्रीय मंत्री ने रखी प्रतिक्रिया
पीपीपी नेता राजा रब्बानी ने सत्र में धार्मिक मामलों के मंत्री नूर हक कादरी की अनुपस्थिति की तरफ भी इशारा करते हुए सवाल किया कि क्या मंत्री नाराज हो गए हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक हज सब्सिडी का प्रस्ताव खारिज होने के बाद रब्बानी संसद से वॉकआउट कर गए थे. वहीं, सरकार ने कहा कि पाकिस्तान को मदीना राज्य में स्थापित करने के अपने दावे पर वह अब भी कायम है. सरकार के एक मंत्री ने सफाई में कहा कि हज का 70 प्रतिशत खर्च सऊदी अरब में होता है और वहां के खर्च पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. इसके अलावा सऊदी अरब में खाने, रहने व अन्य सेवाओं का खर्च बढ़ गया है. इसके बावजूद, सरकार लोगों को राहत पहुंचाने की कोशिश कर रही है. केंद्रीय मंत्री नूर हक कादरी ने भी मामले पर अपनी प्रतिक्रिया रखी. उन्होंने कहा कि सरकार जिस रियासत-ए-मदीना मॉडल की बात करती है, उसमें लोगों की बेहतरी, गरीबी उन्मूलन, शिक्षित समाज, मूलभूत ढांचे का विकास और पाकिस्तान को कल्याणकारी राज्य में तब्दील करना शामिल है. उन्होंने कहा, रियासत-ए-मदीना मॉडल का मतलब यह नहीं है कि हम लोगों को हज मुफ्त में भेजें और देश की सब्सिडी इस पर फेंके. इसका यह भी मतलब नहीं है कि जिन लोगों को हज यात्रा पर जाना है. वे आम जनता के पैसे का इस्तेमाल करेंगे. मंत्री ने हालांकि यह भी कहा कि अगर सब्सिडी दे दी जाती तो अच्छा होता.
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हज सब्सिडी पर भारत की हुई सराहना, सूचना मंत्री ने किया बचाव
जे आई (JI) प्रमुख सिराजुल हक ने कहा- ‘मदीना राज्य की तर्ज पर पाकिस्तान बनाने का वादा करने वाली हज यात्रियों को सब्सिडी ही देने को तैयार नहीं है. भारत, बांग्लादेश और अफगानिस्तान अपने हज यात्रियों पर बोझ नहीं डाल रहे हैं तो पाकिस्तानी सरकार ऐसा क्यों कर रही है. युद्ध से प्रभावित अफगानिस्तान भी हाजियों को सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है लेकिन पाकिस्तानी सरकार हज यात्रियों की मुश्किलें बढ़ा रही है’. नैशनल एसेंबली में पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और विपक्षी दल के नेता शाहबाज शरीफ ने कहा- ‘इमरान खान की सरकार ने पाकिस्तान के लोगों को महंगे हज का तोहफा दिया है. ऐसा लगता है कि सरकार इसे एक धार्मिक कर्तव्य की तरह नहीं बल्कि कमाई के साधन के तौर पर देखती है. यह पहली कैबिनेट है जिसने हज पर सब्सिडी नहीं देने का फैसला किया है’. सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने इस कदम के बचाव में कहा कि सरकार ने आर्थिक संकट के मद्देनजर हज सब्सिडी नहीं देने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि इस साल 1 लाख 84 हजार पाकिस्तानी तीर्थयात्रियों को हज करने का मौका मिलेगा. इसमें से 500 हज स्लॉट गरीबों के लिए आरक्षित किए गए हैं.
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