आज स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर( वीर सावरकर, Veer Savarkar) की जयंती है. उनका जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गाँव में हुआ था. उनके पिता दामोदरपंत गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्तिय थे. जब वीर सावरकर 9 साल के थे तभी इनके सर से माता का हाथ उठ गया था.

शिक्षा
वीर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. इन्हे हमेशा से ही पढ़ाई में रुची रही. बचपन से ही वे पढ़ाकू थे. बचपन में उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं. वीर सावरकर जब विलायत में क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तभी 1910 ई. में एक हत्याकांड में सहयोग देने के रूप में एक जहाज़ द्वारा भारत रवाना कर दिये गये.

क्रांतिकारी संगठन की स्थापना
वीर सावरकर ने पूना में 1940 में ‘अभिनव भारती’ नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था. आज़ादी के वास्ते काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई. अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले वीर सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी. 1909 में लिखी पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857’ में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आज़ादी की पहली लड़ाई घोषित की थी.

कालेपानी की दोहरी सज़ा
तिलक की अनुशंसा पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली. ‘इंडियन सोसियोलॉजिस्ट’ और ‘तलवार’ में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के ‘युगांतर’ में भी छपे. वे रूसी क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे. लंदन में रहने के दौरान सावरकर की मुलाकात लाला हरदयाल से हुई. लंदन में वे इंडिया हाउस की देखरेख भी करते थे. मदनलाल धींगरा को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने ‘लंदन टाइम्स’ में भी एक लेख लिखा था. उन्होंने धींगरा के लिखित बयान के पर्चे भी बांटे थे. 1909 में लिखी पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित किया.

वीर सावरकर जी को 1911 से 1921 तक अंडमान जेल (सेल्यूलर जेल) में रहे. 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल भोगी. 1937 ई. में उन्हें आजाद कर दिया गया था, परन्तु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को उनका समर्थन न प्राप्त हो सका 1947 में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया. महात्मा रामचन्द्र वीर (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया. और 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया. इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा.

जेल की दीवारों पर लिखी कवितायें
सावरकर दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया. इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा.
जाति प्रथा के विरुद्ध लड़ी लड़ाई
वीर सावरकर उन्होंने हिन्दुओं में जातिप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी. सावरकर के आखिरी दिन जिस तरह के थे, उसमें साफ कहा जा सकता है कि उन्होंने सबकुछ छोड़कर इच्छामृत्यु को चुना. उनका नाम महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में भी लिया गया था लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें साफ बरी कर दिया था.

एक फरवरी 1966 से उन्होंने वो सारी चीजें लेनी बंद कर दीं, जो उन्हें जिंदा रख सकती थीं. इसमें जीवनरक्षक दवाइयां, खाना और पानी सभी कुछ शामिल था. 26 फरवरी तक वह उपवास करते रहे. वह स्वतंत्र भारत के इच्छा मृत्यु के सबसे बड़े उदाहरणों में शामिल थे.
इच्छा मृत्यु के समर्थक थे
सावरकर ने अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1964 में ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ शीर्षक से एक लेख लिखा था. इस विषय से संबंधित अपना चिंतन उन्होंने इस लेख में स्पष्ट किया था. सावरकर ने अपने जीवन को स्वेच्छा से अनशन द्वारा समाप्त कर लिया था. इस बारे में उनका कहना था कि आत्महत्या और आत्म-त्याग के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है.

तो ये स्व बलिदान होता है
सावरकर ने तर्क दिया कि एक निराश इंसान आत्महत्या के साथ अपना जीवन समाप्त करता है. लेकिन जब किसी के जीवन का मिशन पूरा हो चुका हो, शरीर इतना कमजोर हो जाए कि जीना असंभव हो, तब जीवन का अंत करने को स्व बलिदान कहा जाना चाहिए. सावरकर की आत्मकथा मेरा जीवन कारावास के परिशिष्ट में उनके अंतिम दिनों में लिखे गए कई पत्र प्रकाशित हैं. इसी में एक पत्र ऐसा भी है, जिसमें उन्होंने कई तर्कों और अपने जीवन में आए क्षणों के जरिए इच्छा मृत्यु की व्याख्या की है.

26 फरवरी 1966 को भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ. उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता. वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे.
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