इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में रह रहे बालिग जोड़ों की सुरक्षा से जुड़ी एक दर्जन से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बालिग व्यक्तियों को अपनी मर्जी से साथ रहने का पूरा अधिकार है और लिव-इन रिलेशनशिप को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। भले ही यह अवधारणा सभी को स्वीकार्य न हो, लेकिन केवल शादी न होने के आधार पर ऐसे रिश्ते को अपराध नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बताया सर्वोपरि
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जब कोई बालिग व्यक्ति अपना जीवनसाथी चुन लेता है, तो परिवार के सदस्य भी उसके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। संविधान के तहत राज्य का कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करे। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जीवन का अधिकार सर्वोच्च है, चाहे व्यक्ति विवाहित हो या अविवाहित।
घरेलू हिंसा अधिनियम का भी किया उल्लेख
कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में ‘पत्नी’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि घरेलू रिश्ते में रहने वाली महिलाओं को सुरक्षा, भरण-पोषण और अन्य अधिकार दिए गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि कानून लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी संरक्षण प्रदान करता है।
सभी याचिकाएं स्वीकार, पुलिस को सुरक्षा के निर्देश
जस्टिस विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ ने आकांक्षा सहित 12 रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए संबंधित जिलों की पुलिस को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध कराएं। कोर्ट ने माना कि केवल शादी न करने के कारण किसी नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

















































