लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे कांग्रेस के लिए 2014 से कहीं ज्यादा खराब रहे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ऐतिहासिक जीत कांग्रेस की ऐतिहासिक हार में तब्दील हो गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पारिवारिक सीट अमेठी भी हाथ से निकल गई जो हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रही है. बीजेपी की फायरब्रांड नेता और स्टार प्रचारक स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष को यहां से हरा दिया. मोदी लहर ने इस बार भी कांग्रेस पार्टी को जमीन से उठने नहीं दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वे कौन-कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस पार्टी का इस चुनाव में बुरा हस्र हुआ है.
चौकीदार चोर कहना पड़ा भारी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावों से काफी पहले ही राफेल डील का मामला उठाया और ‘चौकीदार चोर है’ का नारा देना शुरू कर दिया. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में मोदी सरकार को क्लीनचिट देने के बाद भी उन्होंने ‘चौकीदार…’ कहना जारी रखा. राहुल गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की शिकायत भी दर्ज कराई गई. इसके लिए उन्हें शीर्ष अदालत में माफी भी मांगनी पड़ी.
राफेल डील पर क्लीनचिट, फिर भी चुप नहीं हुए राहुल
मोदी सरकार को राफेल डील के मामले में क्लीनचिट मिलने के बाद भी राहुल गांधी ने इस मुद्दे को जनता के समक्ष उठाना बंद नहीं किया.
पीएम पर लगातार हमला बोलना भी बनी वजह
पीएम मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. यह बात राहुल गांधी की समझ में नहीं आई. वह बार-बार नरेंद्र मोदी पर सीधे हमला बोलते रहे. उन्हें पीएम मोदी पर अटैक करने की बजाए उनकी नीतियों को लेकर सवाल उठाना चाहिए था. इस मामले में वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सबक ले सकते थे. सीएम केजरीवाल भी पहले पीएम मोदी पर सीधे हमला करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस मामले में अपनी समझ विकसित की और उन्होंने हमला करना बंद कर दिया.’मोदीलाइ’ शब्द वाली बात भी निकली झूठ.
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए ट्वीट किया था, ‘इंग्लिश डिक्शनरी में एक नया शब्द जुड़ा है, जिसका स्नैपशॉट नीचे लगा रहा हूं. इसके साथ ही कैप्शन में स्माइली की इमोजी भी लगाई गई थी. मोदीलाइ शब्द को लेकर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ट्वीट करके कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदीलाइ शब्द के बारे में स्क्रीन शॉट लगाकर जो दावे किए हैं, वे पूरी तरह से फर्जी हैं. उन्होंने कहा कि यह शब्द हमारी किसी डिक्शनरी में नहीं है.
राहुल और प्रियंका की छवि पिकनिक मनाने वालों की बनी
पीएम मोदी ने अपनी छवि लोगों के बीच बिना रुके-बिना थके काम करने वाले की बनाई. उनके बारे में यह प्रचारित किया गया कि वह 18-18 घंटे काम करते हैं और लोगों के हित के बारे में सोचते रहते हैं. आम जनता में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बारे में यह सवाल उठाया गया कि ये राजनीति को पिकनिक की तरह लेती हैं.
बनारस से प्रियंका गांधी के लड़ने की बात से भी हुई दिक्कत
प्रियंका गांधी ने लोकसभा चुनावों के दौरान यह बयान दिया है कि अगर पार्टी चाहेगी तो मैं बनारस से लड़ने के लिए तैयार हूं. हालांकि, वह बनारस से चुनाव नहीं लड़ीं और इसका आम जनता के बीच नकारात्मक असर पड़ा. नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर वह हार भी जाती तो भी उनकी छवि योद्धा होने की बनती.
प्रियंका गांधी को देर से दी महासचिव की जिम्मेदारी
प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनावों से ठीक पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के महासचिव की जिम्मदोरी दी. इस फैसले में देरी करने के चलते आम जनता के बीच अच्छा मैसेज नहीं गया. इस बारे में यह कहा गया कि मोदी का मुकाबला करने के लिए राहुल गांधी अकेले सक्षम नहीं हैं, इसीलिए वे प्रियंका गांधी को लेकर आए. लोगों के बीच प्रियंका की छवि को इंदिरा गाधी से जोड़कर देखा गया. प्रियंका से जुड़े वीडियो इंदिरा-2 के नाम से सोशल मीडिया पर साझा किए गए. उनकी लोकप्रियता देखते नहीं बनी, पर इस फैसले को पहले लिए जाने से शायद उन्हें फायदा मिल सकता था.
कई राज्यों में गठबंधन नहीं कर पाए
कांग्रेस ने भी कई राज्यों में समझौता किया और दूसरी पार्टियों से गठबंधन भी किया. इन राज्यों में तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक शामिल रहे. लेकिन, कई ऐसे राज्य भी रहे जिनमें गठबंधन नहीं हो सका. इन राज्यों में दिल्ली, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा शामिल रहे. इसके चलते कांग्रेस पर बड़ी पार्टी होने का अहंकार होने का आरोप लगा.
दो सीटों से चुनाव लड़ना भी बनी हार की वजह
देश में बड़े नेता पहले भी कई जगहों से चुनाव लड़ते रहे हैं और इसका लोगों के बीच सकारात्मक संदेश जाता रहा है. हालांकि, राहुल गांधी के मामले में यह उल्टा पड़ा. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने इस बार दो जगहों से उत्तर प्रदेश के अमेठी और केरल के वायनाड से लोकसभा चुनाव लड़ा. इससे लोगों के बीच यह संदेश गया कि राहुल को अमेठी से हारने का डर है, इसलिए वह केरल के वायनाड से चुनाव लड़े.
सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर ने अपनी टिप्पणी से किया शर्मसार
कांग्रेस ने चुनावों के दौरान अपने बड़ बोले नेताओं पर कोई रोक नहीं लगाई. इसका चुनावों के दौरान खामियाजा भुगतना पड़ा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के पीएम मोदी के खिलाफ दिए गए बयानों से लोकसभा चुनाव 2014 और गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान हो चुका है. इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और थिंकटैंक सैम पित्रोदा के बयानों से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है. उन्होंने अपने बयान में कहा- 1984 हुआ तो हुआ, आपने पांच साल में क्या किया.’ इसका विशेष रूप से सिख समुदाय के बीच गलत संदेश गया.
एजेंडा सेट करने में नाकाम रही पार्टी
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपना एजेंडा सेट करने में नाकाम रही. वह देश के गरीब लोगों, मध्यवर्ग के लिए क्या करेगी यह समझाने में असफल रही। हालांकि कांग्रेस ने देश में गरीबों के लिए न्याय स्कीम का बहुत प्रचार किया. इसके तहत देश के पांच करेाड़ सबसे ज्यादा गरीब लोगों को 72 हजार रुपये प्रति वर्ष देने का वादा किया.
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