आख़िर पूर्वांचल में क्यों कमजोर रहा महगठबंधन का असर, किसने बूथ प्रबंधन से तोड़ा विपक्ष का चक्रव्यूह

17 वीं लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जिस तरह दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही है, वह अप्रत्याशित है. पीएम मोदी का जादू ऐसा चला कि सभी विपक्षी किले ध्वस्त हो गए. इस चुनाव में जाति, धर्म और परिवारवाद की राजनीति को बड़ी शिकस्त मिली है. बीजेपी ने सबसे बड़ी लड़ाई देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लड़ी जहाँ उसे महागठबंधन से बड़ी चुनौती मिलती दिख रही थी. यूपी के पूर्वांचल में यह लड़ाई अमित शाह और सुनील बंसल के योद्धा क्षेत्रीय संगठन महामंत्री रत्नाकर ने लड़ी. यह रत्नाकर का बूथ मैनेजमेंट और व्यूह संरचना की कुशलता थी कि जिसकी बदौलत पूर्वांचल में महागठबंधन और प्रियंका फैक्टर बेअसर हो गया.


नरेंद्र मोदी की दोबारा सत्ता में वापसी का सपना संजोये बीजेपी सरकार के कार्यकाल का आखिरी साल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा. एससी/एसटी, नोटबंदी, जीएसटी, राम मंदिर या फिर हो कथित राफेल भ्रष्टाचार मुद्दा, समूचे विपक्ष ने ऐसा माहौल बनाया कि चुनावी दहलीज पर खड़ी पार्टी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गंवाने पड़े. बीजेपी की इस हार ने समूचे विपक्ष में जान डाल दी. इसका सबसे ज्यादा असर देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में देखने को मिला जहां बीजेपी को सत्ता से रोकने के लिए कभी धुर विरोधी रहे सपा-बसपा और रालोद एक साथ आ गए. महागठबंधन के बाद प्रदेश में जो जातीय समीकरण बना, वो बीजेपी की नींद उड़ाने जैसा था, यहाँ तक कि राजनीतिक पंडित भी बीजेपी की सत्ता में वापसी के सवाल पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगे.


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बीजेपी को सबसे अधिक चुनौती पूर्वांचल में मिलती दिख रही थी. पार्टी की राहें तब और कठिन दिखने लगीं जब कांग्रेस ने महासचिव प्रियंका गांधी को पूर्वांचल का प्रभारी बनाकर भेजा, वहीं महागठबंधन ताबड़तोड़ रैलियों से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रहा था. बीजेपी के लिए पूर्वांचल इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, सीएम योगी का गढ़ गोरखपुर, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय का संसदीय क्षेत्र तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का संसदीय क्षेत्र भी आता है. ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में बीजेपी ने पूर्वांचल फतह के लिए अपना भरोसा एक बार फिर रत्नाकर पर ही दिखाया.


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रत्नाकर व्यूह संरचना और बूथ मनेजमेंट में माहिर माने जाते हैं, अपने इसी कौशल के से उन्होंने बीजेपी को 2017 विधानसभा चुनाव और और नगर निकाय चुनाव में सभी सीटों पर प्रचंड जीत दिलाई थी, लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी थीं. सपा-बसपा के जातीय अंकगणित के साथ-साथ एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर भी एक बड़ी चुनौती थी.


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रत्नाकर ने अपने तजुर्बे का इस्तेमाल करते हुए राजनीति की बिसात पर गोटियां सेट कीं और विपक्षी चालों को मात देने के लिए योजनाओं का खाका खींचने के बाद दिन-रात को समान मानते हुए क्रियान्वयन में युद्ध स्तर पर जुट गए. बूथ प्रबंधन और सेक्टर संरचना में उन्होंने मुख्यरूप से फोकस किया वहीं समय-समय पर ढीलाई बरतने वाले कार्यकर्ताओं के पेंस में कसने में वे पीछे नहीं रहे. रत्नाकर लगातार अमित शाह और सुनील बंसल के संपर्क में बने रहे और उन्हें समय-समय पर फीडबैक देते रहे.


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रत्नाकर लगाकर सभी लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करते रहे. इस दौरान उन्होंने असंतुष्टों को साधा और जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया. मोदी और योगी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को को जन-जन तक पहुंचाने के साथ-साथ उनके लाभार्थियों को साधना भी बहुत जरुरी था, इसके लिए उन्होंने अपने हर कार्यकर्ता को कम से कम 50 लाभार्थी के घर भेजा और जिससे पार्टी के पक्ष में माहौल बना. बाकी काम रत्नाकर के बूथ मैनेजमेंट एवं सेक्टर संरचना में कौशल ने कर दिया. जिससे बीजेपी को पूर्वांचल में 27 लोकसभा सीटों में से 22 सीटों पर जीत दिलाई. पूर्वांचल के इन चुनाव परिणामों में रत्नाकर बीजेपी में एक बड़े योद्धा बनकर उभरे हैं.


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