योगीराज बाबा गंभीरनाथ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन योग के व्यापक आयामों पर मंथन

मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित योगीराज बाबा गंभीरनाथ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे एवं अंतिम दिन दो महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए। इस संगोष्ठी का आयोजन योगीराज बाबा गंभीरनाथ यूजीसी चेयर एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत योगीराज बाबा गंभीरनाथ यूजीसी चेयर के अध्यक्ष प्रो. द्वारका नाथ द्वारा अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट कर हुई। संगोष्ठी के पहले तकनीकी सत्र में कुल 21 ऑनलाइन और 10 ऑफलाइन शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जबकि 4 शोध पत्र प्रस्तुत नहीं हो सके।

तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. सरोज वर्मा ने योग को केवल चिकित्सा पद्धति न मानते हुए इसे आत्मज्ञान का साधन बताया। उन्होंने कहा कि योग की जड़ें भारतीय परंपरा में वेदों से भी पहले के कालखंड में मिलती हैं। साथ ही, उन्होंने नाथ पंथ की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह परंपरा एकत्व और समग्रता की शिक्षा देती है।

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विशिष्ट अतिथि प्रो. सूरज कुमार गुप्ता ने वर्तमान समय में योग दर्शन की प्रासंगिकता पर बल देते हुए इसके व्यावहारिक पक्ष को समझाने की आवश्यकता बताई। प्रो. सुशील कुमार तिवारी ने योग को केवल शारीरिक साधना न मानकर इसे कर्म और अस्तित्व की पहचान बताया।

दूसरे और समापन सत्र की अध्यक्षता पंजाब विश्वविद्यालय की प्रो. शिवानी शर्मा ने की। उन्होंने योग और आत्मचेतना के बीच संबंधों पर चर्चा करते हुए कहा कि योग केवल आसनों तक सीमित नहीं, बल्कि यह अंतःचेतना को जागृत करने की पद्धति भी है। उन्होंने शब्द संरचना के आधार पर योग एवं सिद्धियों का विश्लेषण भी किया।

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कार्यक्रम के संयोजक प्रो. द्वारका नाथ ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि बिना योग के किसी भी कार्य की पूर्णता संभव नहीं है। उन्होंने योगीराज बाबा गंभीरनाथ के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गंभीरनाथ ने योग को केवल साधना का माध्यम नहीं, बल्कि नैतिकता और लोककल्याण का आधार भी बनाया।

कला अधिष्ठाता प्रो. राजवंत राव ने योग की परंपरा को वेदों से भी प्राचीन बताते हुए इसके विभिन्न धर्मों में विकसित प्रारूपों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि योग सनातन धर्म के साथ-साथ बौद्ध, जैन और सूफी परंपराओं में भी अपनी अलग-अलग विधियों के साथ मौजूद है।

कार्यक्रम का सह-संचालन डॉ. दीपक कुमार गुप्ता ने किया और अंत में उन्होंने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी के संचालन की जिम्मेदारी दर्शनशास्त्र विभाग की छात्राओं अदिति और साक्षी ने संयुक्त रूप से निभाई।

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इस द्विदिवसीय संगोष्ठी में शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्रों की बड़ी संख्या में सहभागिता रही, जिसमें योग के विभिन्न आयामों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। संगोष्ठी में प्रस्तुत विचारों ने योग की आधुनिक प्रासंगिकता और इसकी वैज्ञानिक पद्धति को रेखांकित किया।

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