पटना हाई कोर्ट ने बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी द्वारा जारी पैथोलॉजी सेवाओं के लिए नए वर्क ऑर्डर को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इस फैसले के दौरान यह पाया कि वर्क ऑर्डर जारी करने में कई जरूरी नियमों की अनदेखी की गई। इसके साथ ही, अदालत ने बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी को निर्देश दिया कि इस मामले में कोई नई पहल या कार्रवाई नहीं की जाए और एक हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई अप्रैल के पहले हफ्ते में होने की संभावना है।
नए वर्क ऑर्डर की अव्यवस्था
पटना हाई कोर्ट के फैसले के मुताबिक, 19 नवंबर 2024 को बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी ने हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब के साथ पैथोलॉजी सेवाओं के लिए अनुबंध किया था। कोर्ट ने यह पाया कि वर्क ऑर्डर जारी करते समय कंसोर्टियम का अस्तित्व तक नहीं था, बावजूद इसके, इसे बिना किसी कानूनी रूपरेखा के जारी कर दिया गया था। इसके अलावा, अदालत ने यह भी माना कि निर्णय में जल्दबाजी की गई, जिससे संबंधित नियमों का पालन नहीं हुआ।
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पैथोलॉजी सेवाओं के लिए टेंडर विवाद
यह मामला बिहार के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजी टेस्ट की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत हो रहे अनुबंधों से जुड़ा हुआ है। अक्टूबर 2024 में बिहार स्वास्थ्य विभाग ने नई निविदा जारी की थी, जिसे लेकर शुरू से ही विवाद उठे थे। पहले साइंस हाउस नामक कंपनी को एल वन (विजेता) घोषित किया गया था, लेकिन बाद में यह पाया गया कि कंपनी ने वित्तीय निविदा में दो अलग-अलग रेट भरे थे, जिसके आधार पर उसके दावे को रद्द कर दिया गया। इसके बाद कम रेट वाले कंसोर्टियम को विजेता घोषित किया गया।
साइंस हाउस और पीओसीटी की आपत्तियां
साइंस हाउस ने इस फैसले को चुनौती दी और पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब को विजेता घोषित करने पर आपत्ति जताई। इसके साथ ही, पहले से काम कर रही कंपनी पीओसीटी ने भी निविदा प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया। दोनों कंपनियों ने अदालत से हस्तक्षेप की मांग करते हुए याचिका दायर की थी, जो इस समय पटना हाई कोर्ट में चल रही हैं।
पटना हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
24 मार्च को जब इन मामलों की सुनवाई की गई, तो जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस सुरेंद्र पांडे की बेंच ने यह पाया कि हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब के साथ किए गए समझौते से पहले कंसोर्टियम का गठन नहीं हुआ था। सरकारी वकील और दोनों कंपनियों के वकीलों ने भी अदालत में यह स्वीकार किया कि कंसोर्टियम का गठन अभी तक नहीं हुआ है। इस पर पटना हाई कोर्ट ने सरकार और संबंधित पक्षों को कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में तेजी से फैसला किया गया, जिससे नियमों की अनदेखी हुई है।
आखिरी निर्णय की प्रतीक्षा
अदालत ने इस मामले में एक हफ्ते के भीतर सरकारी वकील से जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस समय तक राज्य सरकार को किसी भी नई जिम्मेदारी या समझौते से बचने की सलाह दी है। आगामी सुनवाई अप्रैल के पहले हफ्ते में होने वाली है, जिसमें इस मामले में अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
कंसोर्टियम की भूमिका पर सवाल
इस विवाद में कंसोर्टियम के गठन में देरी और टेंडर शर्तों का पालन न होने के कारण राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी को अब यह साबित करना होगा कि उसने सभी कानूनी और नियामक प्रक्रिया का पालन किया था। इस मामले में पटना हाई कोर्ट का निर्णय राज्य सरकार के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।