सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर चुनाव आयोग को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में ‘नोटा’ (NOTA) को सबसे अधिक मत मिलते हैं तो उस क्षेत्र के परिणाम रद्द कर दिए जाएं और नए सिरे से चुनाव कराए जाएं. यह याचिका बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दायर की है. याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि रद्द हुए चुनाव के उम्मीदवारों को नए चुनाव में भाग लेने की अनुमति न दी जाए.
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि यदि ‘नन ऑफ द एबव’ (NOTA) को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं, तो उस निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव को रद्द कर दिया जाएगा और छह महीने के भीतर नये सिरे से चुनाव कराए जाएं. इसके अलावा रद्द चुनाव के उम्मीदवारों को नए चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
ईमानदार व देशभक्त उम्मीदवार उतारने को बाध्य होंगे दल
याचिका में कहा गया है कि कई बार राजनीतिक दल मतदाताओं से मशविरा किए बिना ही अलोकतांत्रिक तरीके से उम्मीदवारों का चयन करते हैं. इसीलिए कई बार निर्वाचन क्षेत्र के लोग पेश किए गए उम्मीदवारों से पूरी तरह असंतुष्ट होते हैं. याचिका के अनुसार, अगर सबसे अधिक मत नोटा को मिलते हैं तो इस समस्या का हल नए चुनाव से हो सकता है. राइट टु रिजेक्ट’ का अधिकार दिए जाने की मांग करते हुए उपाध्याय ने कहा गया है कि इससे राजनीतिक दल ईमानदार और देशभक्त उम्मीदवार को टिकट देने को बाध्य होंगे.
जहां अधिक नोटा वहां अमान्य घोषित हो चुनाव
याचिका में कहा गया है कि जिस उम्मीदवार पर पार्टियां करोड़ों रुपये खर्च करती हैं और अगर मतदाता उसे अस्वीकार कर देते हैं तो राजनीतिक दल ऐसा उम्मीदवार खड़ा करने से परहेज करेंगे. यह सही मायने में लोकतंत्र होगा क्योंकि इससे लोग वास्तविक रूप से अपना प्रतिनिधि चुन सकेंगे, साथ ही उम्मीदवार में कामकाज के प्रति जवाबदेही आएगी. याचिका में मांग है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह अनुच्छेद 324 में मिली शक्तियों का इस्तेमाल कर उस निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव अमान्य घोषित करे जहां पर नोटा पर सबसे अधिक मत पड़े हों.
अमान्य प्रत्याशी दोबारा चुनाव लड़ने पर लगे बैन
साथ ही वहां कराए जाने वाले नए चुनाव में उन्हें प्रतिबंधित कर दे जो अमान्य ठहराए गए चुनाव में प्रत्याशी थे. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश दे या फिर संविधान का संरक्षक होने के नाते आदेश करे कि जहां नोटा पर सबसे अधिक वोट पड़ेंगे वहां का चुनाव अमान्य माना जाएगा और वहां छह महीने के भीतर नया चुनाव कराया जाएगा जिसमें वे प्रत्याशी नहीं होंगे जो चुनाव में अमान्य ठहराए गए थे.
50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने वाले को ही निर्वाचित घोषित करने का हुआ था प्रस्ताव
याचिका के अनुसार ‘राइट टु रिजेक्ट’ सबसे पहले 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था. रिपोर्ट में यह भी सुझाव था कि वही निर्वाचित घोषित किया जाएगा जिसे 50 फीसदी से अधिक वैध वोट मिले हों. इसके बाद चुनाव आयोग ने 2001 में पहली बार ‘राइट टु रिजेक्ट’ का समर्थन किया था. उस समय जेम्स लिंगदोह मुख्य चुनाव आयुक्त थे. 2004 में जब टीएस कृष्णमूर्ति मुख्य चुनाव आयुक्त थे चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार की अनुशंसा में इसे शामिल किया. चुनाव आयोग ने तब नियमों में संशोधन कर नोटा लाने का भी प्रस्ताव किया था.
ऐसे चुनाव में शामिल हुआ था नोटा
2010 में विधि मंत्रालय की ओर से चुनाव सुधार पर तैयार किए गए बैकग्राउंड पेपर में प्रस्ताव किया गया कि अगर नकारात्मक मत एक निश्चित फीसदी में होंगे तो वह चुनाव अमान्य हो और नया चुनाव कराया जाना चाहिए. चुनाव आयोग और विधि आयोग दोनों ने उस समय निगेटिव या तटस्थ वोटिंग के विकल्प की सिफारिश की थी. जब सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया तो पीयूसीएल संस्था ने 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की जिस पर 2013 में फैसला आया. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटा का विकल्प शामिल करने का आदेश दिया था. इसके बाद नोटा शामिल किया गया.
मौजूदा नोटा ‘राइट टु रिजेक्ट’ की तरह नहीं
उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि मौजूदा नोटा व्यवस्था ‘राइट टु रिजेक्ट’ की तरह नहीं है क्योंकि इसमें अगर नोटा को 99 फीसदी मत मिले और किसी प्रत्याशी को मात्र एक मत मिला तो भी एक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी होता है. कोर्ट ने नोटा पर फैसला देते हुए उम्मीद जताई थी कि इससे पार्टियों पर अच्छे उम्मीदवार का दबाव होगा. कहा गया है कि कोलंबिया व कुछ और देशों में अगर ब्लैंक वोट पचास फीसदी से ज्यादा होते हैं तो वहां दोबारा चुनाव कराया जाता है और अमान्य चुनाव के उम्मीदवार पर नए चुनाव में रोक होती है.
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