Republic Day 2025: संविधान बचाओ के दौर में गणतंत्र 2025 ! एक गणतंत्र के तौर पर हमें अब 75 साल पूरे हो गये और हम 76वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे है। सब जानते है की 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। इस लंबी यात्रा में हमने बहुत कुछ हासिल किया तो बहुत कुछ ऐसा भी किया शायद जिस पर हमें पछतावा हो, एक तरफ़ एक देश के तौर पर हम ख़ुद विश्वगुरु और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के तौर पर स्थापित करने की बाद कर रहे है वही हमारे देश की एक बड़ी आबादी सरकार से मिल रहे मुफ़्त अनाज पर निर्भर हो गई है, एक तरफ़ हमने वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ाने की कोशिशें की तो दूसरी तरह विकासशील से विकसित राष्ट्र की यात्रा में हम संघर्ष कर रहे है। इस दौर में जब जब हमनें स्थाई और दीर्घकालीन नेतृत्व मिला है भारत तरक़्क़ी की राह पर आगे बढ़ा है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और फिर पीवी नरसिंह राव की सरकार आर्थिक और सामाजिक मुद्दों के साथ भारत को अगली सदी में ले जाने की मज़बूत नींव रख कर चली, अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर सरदार डॉ मनमोहन सिंह और फिर नरेंद्र मोदी अपने पूर्वर्ती प्रधानमंत्रियों से ज़्यादा वक़्त तक सत्ता में रहे और व्यापक राष्ट्रीय बदलाव किए, इन रास्तों पर एक तरफ़ भारत ने तरक़्क़ी की तो दूसरी तरफ़ अमीरी ग़रीबी का फ़ासला भी बढ़ता गया, माध्यम वर्ग आज भी अपनी कई चुनौतियों से रूबरू है, कर प्रणाली से लेकर वित्तीय प्रबंधन सवालों में है।
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हाँ एक राष्ट्र के रूप में उसकी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखना और उसे विस्तार देना भी महत्वपूर्ण है, NDA की वर्तमान सरकार इस मोर्चे पर पीछे की सरकारों से काफ़ी आगे रही है शायद इसका एक कारण यह भी रहा हो की हम कई मुद्दों पर पूर्व से व्यवस्थित और नियोजित थे। इस बार गणतंत्र दिवस थीम रोचक है “स्वर्णिम भारत -विरासत और विकास” अगर एक राष्ट्र के रूप में हम इसे ऐसे ही आगे ले जा पाने में सक्षम होते तो शायद इससे बेहतर कुछ नहीं होता, परन्तु हम इसमें राजनीतिक अवसर ज़्यादा खोजते नज़र आते है।
पिछले साल भार में ख़ास कर लोकसभा 2024 के दौर में दो नारों ने चुनावी माहौल बदल कर रख दिया एक था “संविधान बचाओ” दूसरा था “अबकी बार 400 पार” अब इन नारों की तुलना 2019 या 2014 के लोकसभा चुनावों से अगर हम करते है तो इस बीच “अबकी बार मोदी सरकार” या “हर हर मोदी घर घर मोदी” से लेकर “मैं भी मोदी” जैसे नारों ने चुनवाई फ़िज़ा बदली।
तमाम दुश्वारियों के यह भी सच है की भारत की GDP 55 गुना बढ़ कर 150 लाख करोड़ हो गई, दुनिया भर के देशों की GDP में हमारा योगदान दस फ़ीसदी का है, इस यात्रा में कुछ एक अवसरों को छोड़ दें तो हमने हमेशा वृद्धि ही दर्ज की है, एक आँकड़े के अनुसार 1960 से पूर्व हम अनाज आयात कर रहे थे, 1950 में अनाज का उत्पादन महज़ 5.49 करोड़ टन था जो आज इसके कई गुना बढ़ चुका है।
देश में संविधान लागू हुए एक लंबा अरसा हो गया इस बीच 100 से ज़्यादा बार इसमें संशोधन हुए, इस बीच यह भी आँकलन होता है कि संविधान नहीं होता तो क्या होता, शायद वही होता जो ग़ैर गणराज्य देशों में होता है तानाशाही, राजतंत्र, विभाजित भारत या फिर किसी और महाशक्ति का हम पर प्रभाव। इस बीच आरक्षण का मुद्दा सबसे गर्म रहा इसे लागू करने इसे विस्तार देने से लेकर इसे समाप्त करने या इसे पूर्व रूप से जातिगत रखने के जगह आर्थिक रखने का विमर्श सामने आया। वोट बैंक और विभिन्न चुनावी स्थितियों के नाते राजनैतिक दल इन विषयों को उठाने से गुरेज़ भी नहीं करते और चुनावी आंकलनों के आधार पर आगे का निर्णय करते दिखते है।
इस बीच कई बड़े बदलाव हुए तकनीकी के साथ तंत्र में पारदर्शिता और जनता को सरकार से सीधे जुड़ने का अवसर मिला क्योकि सरकार जनता के लिए थी जनता से सरकार थी। DBT से लेकर RTI और फिर सोशल मीडिया ने इस दौर में क्रांति का काम किया है,हालाँकि इसमें कई चुनौतियाँ भी है लेकिन इन चुनौतियों के बीच एक बड़ी उम्मीद भी की हम एक राष्ट्र के तौर पर अपना 100वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे होंगे तब भारत अपनी कुछ और चुनौतियों को पीछे छोड़ चुका होगा।
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