वित्त वर्ष 2019-20 के लिये अंतरिम बजट की छपाई का काम सोमवार को शुरू हो गया और वित्त मंत्रालय में परंपरागत हलवा रस्म के आयोजन के साथ बजट दस्तावेजों की छपाई की औपचारिक शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे बजट के बारें में बताने जा रहे है, जिसके बारें में शायद ही आपने कभी सुना होगा. भारतीय इतिहास में दर्ज कई घोटालों के किस्सों में से एक किस्सा मुद्रा घोटाला का भी है. जिसने भारतीय अर्थववस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए थे. इस घोटले के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को संसद पहुंच बजट पेश करना पड़ा था. 1958 में नेहरू को देश के वित्त मंत्री का कार्यभार संभालना पड़ा था और बजट पेश करना पड़ा था.
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आपको बता दें कि, मुद्रा घोटाले के बाद देश के चौथे वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा था. टीटी कृष्णामचारी के इस्तीफे के बाद वित्त मंत्री की भूमिका निभाते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने संसद में बजट भी पेश किया था, जिसे उन्होंने खुद ही पडेस्ट्रियन (साधारण या सादा) करारा दिया. और बजट भाषण में कहा था कि, ‘परंपरा के मुताबिक, आज आने वाले साल के लिए बजट पेश होना है. अप्रत्याशित और अप्रसन्न परिस्थितियों की वजह से, वित्त मंत्री जो सामान्य तौर पर आज दोपहर बजट पेश करते, हमारे साथ नहीं हैं. आखिरी समय में यह भारी जिम्मेदारी मुझपर आ गई है.’
मुद्रा घोटाले के बाद अचानक वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी के इस्तीफे के बाद नेहरू के पास समय नहीं था बजट में वो कुछ बड़े बदलाब कर सके. इसलिए संसद में उन्होंने वही बजट पेश करते हुए कहा, ‘जिन परिस्थितियों का आज हम सामना कर रहे हैं, मैं इस सदन के सामने जो पेश कर सकता हूं उसे पडेस्ट्रियन बजट कहा जा सकता है, मुख्य चीजों में एक निरंतरता है, अपेक्षाकृत छोटे बदलाव किए गए हैं या ऐसे बदलाव जो खुद आए हैं.’
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बजट में आकड़ों से ज्यादा हुई थी विचारों पर बात
नेहरू ने बजट से पहले कुछ सोचा नहीं था इसलिए उन्होंने जल्दी भाषण खत्म करने के बाद आंकड़ों से हटकर विचारों पर बात करते हुए कहा, ‘हम ऐसे क्रांतिकारी बदलावों वाले समय में जी रहे हैं जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने मानव के प्रगति का विशाल द्वारा खोला है. हम ऐसे समय में भी जी रहे हैं जब दुनिया के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा युद्ध की तैयारी और सामूहिक विनाश के लिए घातक हथियारों के उत्पादन पर खर्च हो रहा है. जब अंतरिक्ष यात्रा हमें इशारा कर रही है और ब्रह्माण्ड का विस्तार हमारी पहुंच में दिखता है, हमारे मस्तिष्क का क्षितिज भय से सीमित है और भयानक आपदा की छाया हम पर मंडराती है.’
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उन्होंने आगे कहा, ‘हम और दूसरे कैसे खुद को इस भय-घृणा और दुनिया में हो रहे बेकार के झगड़ों से ऊपर उठा सकते हैं? ‘ भारत में हम कैसे साहस और एकता के साथ मजबूती से हाथ पकड़ें और भविष्य के लिए दिल थामें? इस पीढ़ी को विशाल समस्याओं का सामना करते हुए महान परिणाम हासिल करने हैं. हम अपने और दुनिया के लोगों की सेवा तभी कर सकते हैं, जब अपने विचारों के साथ रहें और जिएं.’
‘हमारी सफलता हम पर निर्भर’
पंडित नेहरू ने कहा, ‘हमारे आगे बढ़ने में यह बजट भाषण एक छोटी घटना है. हमें इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा कि हमें क्या करना है और हमें क्या हासिल करना है. सबसे बढ़कर, हमें यह महसूस करना है कि हमारी सफलता हम पर ही निर्भर है, दूसरों पर नहीं, हमारी अपनी मजबूती और बुद्धिमता पर निर्भर है. हमारी एकता व सहयोग पर और सेवा के लिए अवसर प्राप्त लोगों की भावानाओं पर.’
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