मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ हुआ। ‘सोशियोलॉजिकल डिसकोर्स इन इंडियन नॉलेज सिस्टम’ विषयक इस संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो. बद्रीनारायण द्वारा किया गया, जो एक प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक एवं कवि भी हैं। उद्घाटन सत्र का आयोजन संवाद भवन में किया गया, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने की। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवंत राव उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत वाग्देवी की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। इसके बाद संगीत एवं ललित कला विभाग के विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना एवं विश्वविद्यालय कुलगीत का गायन किया, जिससे पूरे वातावरण में एक आध्यात्मिक और विद्वतापूर्ण ऊर्जा का संचार हुआ।
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संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित यह अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान के बीच के संबंध को उजागर करती है। उन्होंने भारत सरकार की ‘वन नेशन, वन रजिस्ट्रेशन’ पहल का उल्लेख करते हुए कहा कि यह शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और विश्वविद्यालय इस दिशा में लगातार प्रयासरत है।
मुख्य अतिथि प्रो. बद्रीनारायण ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल मानव केंद्रित नहीं है, बल्कि यह सभी जीवों के कल्याण की बात करती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज ही ज्ञान का सृजन और परिमार्जन करता है। भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध, वैज्ञानिक और सर्वजनहितकारी बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में लोकगीत, अनुष्ठान और जन रीतियों के माध्यम से संपूर्ण जीव जगत के कल्याण का उपदेश दिया जाता है। लोकगीतों और अनुष्ठानों में प्रकृति के विभिन्न तत्वों, जैसे नदी, मिट्टी, वायु और जल का विशेष रूप से आह्वान किया जाता है। भारतीय समाज की विशेषता यह है कि यहां प्रत्येक प्राकृतिक संसाधन के उपयोग के लिए एक व्यवस्था मौजूद है, जो हमें संसाधनों के प्रति संवेदनशील बनाती है। उन्होंने समाज वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे क्षेत्रीय अध्ययन को प्राथमिकता दें और समाज में व्याप्त पारंपरिक ज्ञान को गहराई से समझने का प्रयास करें।
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उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्रो. राजवंत राव ने भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय संस्कृति के आपसी संबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ें हमारे प्राचीन ज्ञान में निहित हैं। उन्होंने कर्म के सिद्धांत पर चर्चा करते हुए कहा कि यह सिद्धांत वैदिक काल से लेकर आज तक प्रत्येक भारतीय के जीवन में रचा-बसा हुआ है और निरंतर प्रवाहमान है। भारतीय संस्कृति की विशेषता इसकी परिवर्तनशीलता है, जिससे यह समय के साथ खुद को पुनः सृजित करती रहती है। उन्होंने समाजशास्त्र विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन को एक महत्वपूर्ण पहल बताया।
संगोष्ठी निदेशक प्रो. अनुराग द्विवेदी ने उद्घाटन सत्र में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा अदिति सिंह ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी समन्वयक डॉ. मनीष कुमार पांडेय ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कई शिक्षक, अधिकारी, शहर के गणमान्य नागरिक, विद्वान और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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यह संगोष्ठी भारतीय ज्ञान परंपरा को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से समझने और उस पर संवाद स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान कर रही है। भारतीय परंपरा की वैज्ञानिकता, लोकहितकारी दृष्टि और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को गहराई से समझने के लिए यह संगोष्ठी एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें शोधार्थी और विद्वान गहन मंथन कर रहे हैं।
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