बलरामपुर (Balrampur) जिले में धर्मांतरण का खेल एक बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है। अब तक छांगुर (Channgur) उर्फ जमालुद्दीन, नीतू उर्फ नसरीन और नवीन को मुख्य आरोपियों के तौर पर चिन्हित कर कार्रवाई की गई, लेकिन जांच एजेंसियों का दावा है कि ये सिर्फ मोहरे हैं। असली मास्टरमाइंड सादुल्लानगर क्षेत्र से जुड़ा है, जो बीते एक दशक से संवेदनशील बना हुआ है। हाल ही में शासन को सौंपी गई एक रिपोर्ट में इस इलाके की स्थिति को बेहद चिंताजनक बताया गया है।
डीएम और एसपी को हटाने के पीछे का सच
पूर्व जिलाधिकारी अरविंद सिंह, जो 12 जून 2023 से 28 जून 2024 तक बलरामपुर में तैनात रहे, उन्होंने धर्मांतरण में पुलिस की संलिप्तता उजागर कर कार्रवाई की सिफारिश की थी। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद उनका तबादला कर दिया गया और उनकी रिपोर्ट फाइलों में दबा दी गई। यही नहीं, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पर भी इसका असर पड़ा और उन्हें भी पद से हटा दिया गया। हालांकि, अब वह अयोध्या मंडल में एक नए संवेदनशील जिले की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
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धर्मांतरण का अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन
एजेंसियों की जांच में यह बात सामने आई है कि धर्मांतरण की यह साजिश सिर्फ बलरामपुर तक सीमित नहीं है। इसके तार दुबई, कतर, सऊदी अरब और पाकिस्तान तक फैले हुए हैं। यही नहीं, मुख्य साजिशकर्ता नेपाल में भी इस मुहिम का हिस्सा रह चुका है। उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा से सटे सात जिलों की स्थिति को देखते हुए यह खतरा और गहरा दिखाई देता है। सुरक्षा एजेंसियां बलरामपुर को अब भी संवेदनशील क्षेत्र मान रही हैं।
थानाध्यक्ष पर आरोप, मगर कार्रवाई नहीं
वर्ष 2024 में सादुल्लानगर के तत्कालीन थाना प्रभारी पर गंभीर आरोप लगे। उन पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व सपा विधायक और गैंगस्टर आरिफ अनवर हाशमी को संरक्षण दिया। मजिस्ट्रेटी जांच में भी यह बात उजागर हुई कि एक अप्रैल 2024 को गिरफ्तारी के समय आरिफ घर पर मौजूद था, फिर भी उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। इसके बावजूद थानाध्यक्ष पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई और वह अब भी एक अन्य थाने की कमान संभाले हुए है।
सरकारी ज़मीन पर मजार और प्रशासन की चुप्पी
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि आरिफ अनवर हाशमी ने सादुल्लानगर थाने की जमीन पर ही मजार बना दी। उसने एक समिति बनाकर अपने भाई को मुतवल्ली नियुक्त किया और जमीन को अपने कब्जे में ले लिया। इतना ही नहीं, थाने के नाम की जमीन का रिकॉर्ड बदलवा कर समिति के नाम दर्ज करवा दिया गया। जबकि तत्कालीन एसपी चुप रहे, डीएम अरविंद सिंह की पहल पर जब जांच कराई गई, तब यह पूरा मामला सामने आया।