कैश कांड में फंसे इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) को लेकर संसद की कानून एवं न्याय समिति ने भी गंभीर सवाल उठाए हैं। समिति की हालिया बैठक में सांसदों ने पूछा कि इतने बड़े पैमाने पर उनके घर से कैश मिलने के बावजूद अब तक उनके खिलाफ एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई। उन्होंने इस मामले में सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बढ़ती चिंता जताई।
राजनीतिक भागीदारी पर सवाल
संसदीय समिति ने जजों द्वारा संपत्ति घोषित करने में हो रही देरी पर भी चिंता जताई। कई जज अभी तक अपनी संपत्ति घोषित नहीं कर रहे हैं, जबकि 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने 16 पॉइंट कोड ऑफ कंडक्ट लागू किया था, जिसका पालन न के बराबर हो रहा है। इसके साथ ही, जजों द्वारा राजनीतिक दलों या उनके कार्यक्रमों में भाग लेने को भी लेकर पैनल ने सवाल उठाए हैं। सांसदों ने कहा कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है।
ट्रांसफर को लेकर उठे सवाल
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों के बावजूद उनका केवल हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर होना भी विवादित बना हुआ है। संसदीय सदस्य इस बात पर हैरान हैं कि जब हजारों अध्यापकों को भ्रष्टाचार के कारण नौकरी से हटाया जा सकता है, तो जजों के खिलाफ ठोस कार्रवाई क्यों नहीं होती। उन्होंने इस मुद्दे पर जवाब मांगते हुए कहा कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए।
सांसदों ने उठाए सवाल
संसदीय समिति ने यह भी माना कि जजों के लिए बनाए गए कोड ऑफ कंडक्ट का पालन केवल कागजों तक सीमित रह गया है। 2023 में भी इस पर सिफारिशें आईं, लेकिन सुधार की कोई ठोस पहल नहीं हुई। सांसदों ने सुझाव दिया कि न्यायपालिका में नैतिकता और अनुशासन के मानकों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि जनविश्वास बना रहे।
जवाबदेही के लिए मांग
बैठक में विपक्षी सांसदों ने जस्टिस शेखर यादव के विवादित बयानों और उनकी पार्टी से जुड़े कार्यक्रमों में भागीदारी का भी जिक्र किया। सांसदों ने कहा कि न्यायपालिका के सदस्यों की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरूरी है, ताकि देश के कानून के प्रति जनता का विश्वास बना रहे और न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे।