केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं पर लाइफटाइम बैन लगाने की मांग गैरजरूरी है। सरकार का कहना है कि 6 साल का अयोग्यता काल (डिसक्वालिफिकेशन) पर्याप्त है और यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी याचिका
वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इसके अलावा, उन्होंने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों का त्वरित निस्तारण सुनिश्चित करने की भी अपील की थी। उनकी याचिका रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 1951 के सेक्शन 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए दाखिल की गई थी।
Also Read – अमित शाह का तमिलनाडु CM स्टालिन पर हमला, बोले-10 साल में 5 लाख करोड़ रुपये दिए
केंद्र सरकार का पक्ष – संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि अयोग्यता की अवधि तय करने का अधिकार संसद को है। संसद इसे अनुपातिकता और तर्कसंगतता के सिद्धांतों के आधार पर निर्धारित करती है।
क्या कहते हैं रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट के सेक्शन 8 और 9?
- सेक्शन 8(1) के अनुसार, दोषसिद्धि की तारीख से छह साल की अयोग्यता लागू होती है। यदि कारावास की सजा हुई है, तो रिहाई की तारीख से छह साल तक अयोग्यता रहेगी।
- सेक्शन 9 के तहत, जिन लोक सेवकों को भ्रष्टाचार या विश्वासघात के कारण बर्खास्त किया गया है, वे पांच साल तक अयोग्य माने जाएंगे।
- अश्विनी उपाध्याय ने इन दोनों मामलों में आजीवन अयोग्यता की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का 2013 का ऐतिहासिक फैसला
अप्रैल 2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों को तत्काल प्रभाव से अयोग्य ठहराने का आदेश दिया था। इस फैसले में अपील करने के लिए 3 महीने की अवधि की छूट को भी समाप्त कर दिया गया था।
क्या आजीवन प्रतिबंध संभव?
केंद्र सरकार का स्पष्ट रुख है कि अयोग्यता की अवधि को लेकर निर्णय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाती है।