Year Ender 2024: पीडीए ने अखिलेश को चमकाया, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ से योगी ने पलट दिया खेल, यूपी की सियासत में सुर्खियों में रहीं ये घटनाएं

Year Ender 2024: साल 2024 उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया, जहां सियासत, चुनाव और रणनीतियों ने कई नए पहलू दिखाए। राजनीतिक समीकरणों में बदलाव, नए गठबंधन, और चुनावी नारों ने राज्य की राजनीति को गरमाया। इस साल ने यह भी साबित किया कि कैसे एक नारा या नया फॉर्मूला चुनावों के परिणाम को प्रभावित कर सकता है। आइए एक नजर डालते हैं 2024 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में हुए अहम घटनाक्रमों पर..

लोकसभा चुनाव 2024: बीजेपी को मिला बड़ा झटका, सपा का पीडीए फॉर्मूला हिट

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका लगा। 2014 और 2019 में क्रमशः 73 और 64 सीटों के साथ जीतने वाली बीजेपी इस बार केवल 36 सीटों पर सिमट गई। वहीं, इंडिया गठबंधन को 43 सीटों पर जीत मिली। समाजवादी पार्टी (सपा) ने लोकसभा चुनाव 2024 में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूला अपनाया, जो काफी सफल साबित हुआ। सपा ने इस चुनाव में 37 सीटों पर जीत दर्ज की, जो बीजेपी के लिए एक बड़े झटके के रूप में सामने आई।

फैजाबाद और मेरठ: बीजेपी की हार और सपा की जीत

लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा फैजाबाद (अयोध्या) सीट की रही, जहां बीजेपी के सांसद लल्लू सिंह को हराकर सपा के अवधेश प्रसाद ने जीत हासिल की। वहीं, मेरठ में रामायण के ‘राम’ अरुण गोविल ने भी चुनाव जीता, जो बीजेपी के लिए राहत की बात रही।

राष्ट्रीय लोकदल का बीजेपी के साथ गठबंधन

लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था, जबकि इससे पहले वह समाजवादी पार्टी के साथ थे। गठबंधन टूटने का कारण सीट शेयरिंग पर मतभेदों को बताया गया। इस गठबंधन का भी चुनाव परिणामों पर असर पड़ा, हालांकि RLD को ज्यादा सफलता नहीं मिली।

अखिलेश और राहुल की जोड़ी: एक बार फिर साथ

लोकसभा चुनाव से पहले सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ। ‘दो लड़कों’ (अखिलेश यादव और राहुल गांधी) की जोड़ी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा, जो दोनों दलों के लिए सफल रहा। हालांकि, सपा और कांग्रेस का गठबंधन कई राज्यों में चर्चा का विषय बना, और उनके चुनावी अभियान को अहम माना गया।

पीडीए के जवाब में पीडीएम मोर्चा: असदुद्दीन ओवैसी का नया फॉर्मूला

लोकसभा चुनाव से पहले पल्लव पटेल और असदुद्दीन ओवैसी ने समाजवादी पार्टी के पीडीए के जवाब में पीडीएम (पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) मोर्चा बनाया। हालांकि इस मोर्चे के उम्मीदवारों को कोई सफलता नहीं मिली और यह गठबंधन चुनावी मैदान में फीका पड़ा।

बीजेपी का शानदार कमबैक: उपचुनाव में जोरदार जीत

लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में खाली हुई विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ। बीजेपी ने इस उपचुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 9 में से 7 सीटों पर जीत हासिल की। पार्टी के प्रत्याशियों ने करहल और सीसामऊ में भी कड़ा मुकाबला किया और अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराया। खासकर मुरादाबाद के कुंदरकी क्षेत्र में बीजेपी ने मुस्लिम बहुल सीट पर पहली बार जीत हासिल करके इतिहास रचा। यहां बीजेपी के रामवीर सिंह ने उपचुनाव में सबसे बड़ी जीत दर्ज की।

बीजेपी में ‘खटपट’: सीएम योगी और डिप्टी सीएम के बीच तनातनी की चर्चा

लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अंदर कुछ अंदरूनी मतभेदों की खबरें सामने आईं। सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच पर्दे के पीछे तनातनी की चर्चा थी। साथ ही डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को लेकर भी ऐसी ही अटकलें थीं, जो सियासी गलियारों में गर्म चर्चा का विषय बनीं।

योगी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारा पूरे देश में छाया

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ नारा भी इस साल की प्रमुख राजनीतिक चर्चाओं में रहा। यह नारा केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में भी चर्चा का विषय बना। बीजेपी की चुनावी जीत में इसे अहम फैक्टर माना गया और इस नारे को हिंदू वोटबैंक को एकजुट करने की रणनीति के रूप में देखा गया।

नए गठबंधन, नई रणनीतियां, और बदलती सियासत

2024 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई जोड़ियों और गठबंधनों का भी असर देखा गया। सपा ने जहां पीडीए फॉर्मूला के तहत अपनी ताकत बढ़ाई, वहीं बीजेपी ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों के जरिए अपनी सियासी जमीन को मजबूत किया। इस साल यूपी की सियासत में सत्ता के खेल में कई बड़े मोड़ आए और नए राजनीतिक समीकरण सामने आए।

कुलमिलाकर साल 2024 के अंत तक यूपी की राजनीति में ये घटनाक्रम महत्त्वपूर्ण साबित हुए, जो आगामी चुनावों में और भी ज्यादा असरदार हो सकते हैं।

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