भारतीय क्रिकेट को बुधवार को बड़ा नुकसान हुआ क्योंकि इंग्लैंड में टीम इंडिया को पहली सीरीज जीत दिलाने वाले कप्तान अजित वाडेकर का 77 की उम्र में लंबी बीमारी के बाद मुंबई में निधन हो गया। वाडेकर की मृत्यु की खबर उस समय आई जब भारतीय टीम मौजूदा इंग्लैंड दौरे पर स्पर्धा करने का जवाब तलाश रही है।
वाडेकर महान शख्सियत थे। स्वर्गीय वाडेकर खुशी से मसाज टेबल पर नींद ले रहे थे जब 1971 में आबिद अली ने विजयी रन जमाकर भारत को ओवल के मैदान पर ऐतिहासिक जीत दिलाई। वाडेकर हर काम अपने अलग ही अंदाज में करते थे। एक बार उन्होंने जब टाइगर पटौदी से कप्तानी हासिल की तो अपने ही तरीके से टीम का नेतृत्व किया।
कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में वाडेकर ने मजेदार वाकया साझा किया जब उन्होंने नवाब से कप्तानी हासिल की। तब नवाब लीजेंड का स्तर हासिल कर चुके थे। वाडेकर ने खुलासा किया कि उन्हें 1971 में वेस्टइंडीज दौरे पर टीम में चुने जाने की उम्मीद भी नहीं थी। उन्होंने टाइगर से कहा था, कृपया भरोसा दिलाइए कि मैं टीम में हूं। इसका असर यह रहा कि वो न सिर्फ कैरीबियाई दौरे के लिए टीम में चुने गए बल्कि कप्तान भी बनाए गए। वाडेकर के नेतृत्व में भारत ने गैरी सोबर्स की सितारों से सजी वेस्टइंडीज को मात देकर उसकी धरती पर पहली सीरीज जीत दर्ज की।
वाडेकर की कप्तानी में ही महान सुनील गावस्कर ने 1971 वेस्टइंडीज दौरे पर डेब्यू किया। वाडेकर जब कोच थे तब सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा। वाडेकर ने ही स्पिनर्स के ट्रायल की जिम्मेदारी उठाई, जिस पर टीम इंडिया काफी निर्भर रही। उन्होंने शुरुआत में 1970 के समय के दिग्गज स्पिनर बिशन सिंह बेदी, भागवत चंद्रशेखर, श्रीनिवास वेंकटराघवन और इरापल्ली प्रसन्ना के दम का इस्तेमाल किया। इनके जाने के बाद 90 के दशक में वाडेकर ने अनिल कुंबले, वेंकटपति राजू और राजेश चौहान की त्रिमूर्ति तैयार की, जो भारत का दौरा करने वाली विदेशी टीमों के लिए बुरा सपना बनते रहे।
इस दौरान भारत ने घर में इंग्लैंड, जिम्बाब्वे, श्रीलंका और न्यूजीलैंड को मात दी। टीम इंडिया ने इस दौरान पांच देशों के बीच खेले गए हीरो कप टूर्नामेंट में भी जीत दर्ज की। एक इंटरव्यू में अजित वाडेकर ने कहा था, ‘मेरा एकमात्र हथियार स्पिन था, जिसका मुझे सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल करना था।’ भारत ने जो विदेशों में दो बड़ी जीत दर्ज की, उसमें भी भारतीय टीम के स्पिनर्स ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
वाडेकर के नेतृत्व में बेशक भारत ने 1971 में दो ऐतिहासिक सीरीज जीत हासिल की, लेकिन 1974 में उनकी कप्तानी का अंत अच्छे अंदाज में नहीं हुआ। भारतीय टीम को तब इंग्लैंड में 0-3 की करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इसमें लॉर्ड्स पर शर्मनाक 42 रन पर ऑलआउट होना शामिल है। वाडेकर ने इस मामले में सफाई पेश करना ठीक नहीं समझा और 33 साल की उम्र में उन्होंने जोर देने पर संन्यास ले लिया।
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