बलूचिस्तान और पाकिस्तान के बीच संघर्ष दशकों से चला आ रहा है। यह केवल एक क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारण भी शामिल हैं। हाल ही में “ट्रेन हाईजैक” जैसी घटनाओं ने इस संघर्ष को फिर से चर्चा में ला दिया है। आइए इस पूरे विषय को विस्तार से समझते हैं। बलूचिस्तान, दक्षिण एशिया का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र, वर्तमान में पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह क्षेत्र ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमाओं से लगा हुआ है और रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 1947 से पहले बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत थी, जिसे जबरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया।
बलूचिस्तान का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह क्षेत्र विभिन्न साम्राज्यों के अधीन रहा, जिनमें फारसी, गजनवी, मुगल और अंग्रेज शामिल हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान, बलूचिस्तान को तीन भागों में बांटा गया था:
Also Read : https://x.com/breakingtube1/status/1899469512518578475
1. ब्रिटिश बलूचिस्तान –जो सीधे ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में था।2. खान ऑफ कलात – एक अर्ध-स्वतंत्र रियासत, जिसे ब्रिटिश सरकार ने एक रक्षक राज्य (Protectorate) के रूप में स्वीकार किया था। 3. छोटी रियासतें – जो खान ऑफ कलात के अधीन थीं।
1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ, तब बलूचिस्तान की स्थिति कश्मीर जैसी थी। यह क्षेत्र पाकिस्तान या भारत में शामिल नहीं था, बल्कि 11 अगस्त 1947 को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।लेकिन जिन्ना की नजर इस क्षेत्र पर थी, क्योंकि,यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की भरमार थी। इसका भौगोलिक महत्व था, क्योंकि यह मध्य एशिया और अरब सागर से जुड़ा था। खान ऑफ कलात (मीर अहमद यार खान) ने बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया और ब्रिटेन ने इसे मान्यता भी दे दी। मगर पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर दबाव बनाना शुरू किया।
जिन्ना पहले तो खुद बलूच नेताओं से बातचीत कर रहे थे और बलूचिस्तान की आजादी का सम्मान करने की बात कर रहे थे। लेकिन जैसे ही पाकिस्तान अस्तित्व में आया, जिन्ना ने अपनी बात से पलटी मार ली। ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्र बलूचिस्तान को मान्यता दी थी, लेकिन वह पाकिस्तान के साथ मिलकर पर्दे के पीछे काम कर रही थी। पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान पर सैन्य हमला कर दिया और उसे जबरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया।
बलूच जनता कभी भी पाकिस्तान के इस अवैध कब्जे को स्वीकार नहीं कर पाई। आज भी बलूचिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन जारी है।पाकिस्तान बलूच राष्ट्रवादियों को दबाने के लिए सेना, जबरन गायब किए जाने, हत्याओं और दमनकारी नीतियों का सहारा लेता है।चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के कारण बलूचों की ज़मीन और संसाधन छिन रहे हैं, जिससे वहाँ अलगाव की भावना और तेज़ हो रही है। बलूचिस्तान का पाकिस्तान में शामिल होना न तो कानूनी था, न लोकतांत्रिक। यह ब्रिटिश सरकार और पाकिस्तान की मिलीभगत का नतीजा था। आज बलूचिस्तान में जो संघर्ष चल रहा है, वह इसी ऐतिहासिक अन्याय का परिणाम है।
देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं