मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर।माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि योगीराज बाबा गंभीरनाथ के साथ कई महत्वपूर्ण घटनाएँ जुड़ी हुई थीं। जिस विश्वविद्यालय में आप कार्यरत हैं, उसकी उत्पत्ति महाराणा प्रताप कॉलेज से हुई थी। इस कॉलेज के पहले प्रधानाचार्य अक्षय कुमार बनर्जी थे, जो कोलकाता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख रह चुके थे। वे योगीराज बाबा गंभीरनाथ के शिष्य बन गए और उनके साथ गोरखपुर आ गए। बाद में, उन्हें महाराणा प्रताप कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया, जहाँ वे लंबे समय तक इस पद पर कार्यरत रहे। यही कॉलेज आगे चलकर गोरखपुर विश्वविद्यालय की आधारशिला बना।
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कोलकाता विश्वविद्यालय के ही एक अन्य दर्शनशास्त्री, जो साधक भी थे, योगीराज बाबा गंभीरनाथ के शिष्य बने और आगे चलकर योगी शांतिनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे अत्यंत विद्वान थे, और उनकी पुस्तक Experiences of a Truth Seeker को एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। उन्होंने भारतीय दर्शनों का खंडन करते हुए शास्त्रार्थ के लिए विद्वानों को आमंत्रित किया था। योगी शांतिनाथ ही महंत अवेद्यनाथ महाराज को गोरखपुर लेकर आए थे।
योगी निवृत्तनाथ, जो स्वयं योगीराज बाबा गंभीरनाथ के शिष्य थे, अपने समय के दो विशिष्ट संतों के मार्गदर्शक बने। इनमें से एक थे तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज, जिन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। बाबा गंभीरनाथ ने महंत दिग्विजयनाथ जी को गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था का दायित्व सौंपा और एक लिखित अनुबंध के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि वे इस पवित्र स्थल के उद्धारक बनें।
दूसरे महान संत थे भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद जी। उन्होंने 1912 में मात्र 12-13 वर्ष की आयु में योगीराज बाबा गंभीरनाथ से दीक्षा ली थी। भारत सेवाश्रम संघ केवल एक आध्यात्मिक आंदोलन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। यह संगठन पूरे देश और दुनिया के कई देशों में सक्रिय है, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में इसके कार्य उल्लेखनीय रहे हैं। स्वामी प्रणवानंद जी ने अपने राष्ट्रीय मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया और सदैव समाज की सेवा में समर्पित रहे।
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योगीराज बाबा गंभीरनाथ के चमत्कारों और आध्यात्मिक सिद्धियों से जुड़ी कई मान्यताएँ प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख योगीराज बाबा गंभीरनाथ ग्रंथ में किया गया है। वे उच्च कोटि के साधक थे, जिन्होंने कभी अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन जब भी किसी भक्त को सहायता की आवश्यकता हुई, उन्होंने बिना संकोच उसकी सहायता की।
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