एम्स गोरखपुर में डीएनए दिवस पर आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने साझा की महत्त्वपूर्ण जानकारी

मुकेश कुमार, ब्यूरो चीफ़ पूर्वांचल। एम्स गोरखपुर में आज डीएनए दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित सीएमई सह कार्यशाला के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि आधुनिक चिकित्सा में आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो चुकी है।

डीएनए दिवस, 1953 में डीएनए डबल हेलिक्स की खोज और 2003 में मानव जीनोम परियोजना के पूरा होने की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य आम जनता और चिकित्सा समुदाय में आनुवंशिकी की भूमिका को लेकर जागरूकता फैलाना होता है।

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इस विशेष अवसर पर एम्स गोरखपुर की बहुविषयक अनुसंधान इकाई (MRU) द्वारा आयोजित कार्यशाला का विषय था — “मानव स्वास्थ्य और रोग में आणविक अंतर्दृष्टि”। कार्यशाला का आयोजन कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल (डॉ.) विभा दत्ता, एसएम (सेवानिवृत्त) तथा प्रोफेसर डॉ. आनंद मोहन दीक्षित, डीन रिसर्च एवं नोडल अधिकारी, एमआरयू के निर्देशन में किया गया।

कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी (एसोसिएट प्रोफेसर, बायोकेमिस्ट्री) ने आणविक जीवविज्ञान की भूमिका और उपयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने समझाया कि डीएनए एक “जीवित निर्देश पुस्तिका” की तरह है जो शरीर की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। इसके अध्ययन से हम बीमारी के मूल कारण तक पहुँच सकते हैं।

डॉ. चारुशिला रुकादिकर (सहायक प्रोफेसर, फिजियोलॉजी) ने जीनोमिक्स के शारीरिक अनुप्रयोगों पर व्याख्यान देते हुए बताया कि कैसे जीन में मौजूद सूचनाएं हमारे अंगों और शरीर की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती हैं।

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डॉ. मोहन राज पीएस (एसोसिएट प्रोफेसर, बायोकेमिस्ट्री) ने चिकित्सा में डीएनए की भूमिका पर चर्चा की और बताया कि आनुवंशिक जानकारी के आधार पर हम प्रत्येक रोगी के लिए व्यक्तिगत उपचार (Personalized Medicine) का रास्ता खोल सकते हैं, जिससे इलाज अधिक प्रभावशाली और कम दुष्प्रभावों वाला हो सकता है।

कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों को पीसीआर (PCR), न्यूक्लिक एसिड निष्कर्षण, और जेल इमेजिंग जैसी तकनीकों का हैंड्स-ऑन अनुभव भी कराया गया, जिससे उनकी प्रयोगात्मक समझ में वृद्धि हुई।

कार्यक्रम का समापन डॉ. अतुल रुकादिकर (एसोसिएट प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी) द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी विशेषज्ञ वक्ताओं, आयोजकों, तकनीकी टीम और भागीदारों के योगदान की सराहना की।

क्यों है आनुवंशिकी इतनी जरूरी
?

आज की चिकित्सा सिर्फ लक्षणों के इलाज से आगे बढ़कर बीमारी की जड़ तक पहुँचने की दिशा में बढ़ रही है। कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज़ जैसी कई बीमारियों का संबंध अब आनुवंशिक कारणों से जोड़ा जा रहा है। जेनेटिक परीक्षणों से इन रोगों का जल्दी पता लगाकर समय रहते रोकथाम और इलाज संभव हो पा रहा है।

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इस कार्यशाला ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया कि स्वास्थ्य की कुंजी अब सिर्फ दवाओं में नहीं, बल्कि हमारे डीएनए की गहराइयों में छुपी है।

भविष्य की चिकित्सा अब और अधिक व्यक्तिगत, सटीक और आनुवंशिक ज्ञान पर आधारित होगी।

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