योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी के योग परंपरा में योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य उद्घाटन

मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारतीय योग परंपरा में योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी का अवदान” का विधिवत उद्घाटन उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री एवं श्री गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी द्वारा किया गया।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने की। उन्होंने स्वागत संबोधन में कहा कि “भारतीय ज्ञान, साधना और भक्ति परंपरा में नाथपंथ का महत्वपूर्ण योगदान है।”

आस्था आर्थिकी का कारण बन सकती है, महाकुंभ ने दुनिया को इसकी ताकत समझाई

उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “आस्था आर्थिकी का कारण बन सकती है, महाकुंभ ने दुनिया को इसकी ताकत समझाई। यदि पूर्व की सरकारों ने इसे समझा होता, तो प्रदेश संकट की स्थिति से नहीं गुजरता।
उन्होंने आगे कहा कि “अनेक देशों में उपासना विधियाँ पाई जाती हैं, लेकिन उनमें मतभिन्नता होती है। भौतिक जगत से जुड़े आयामों की सीमाएँ होती हैं। रास्ते अलग हो सकते हैं, लेकिन मंज़िल एक ही है—यह केवल भारतीय मनीषा ही कह सकती है।”

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मुख्यमंत्री ने भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “समस्या दुनिया में नहीं, बल्कि हमारे भीतर थी, क्योंकि हम उपनिषदों से दूर हो गए। हम दुनिया के पीछे भाग रहे थे, लेकिन अब बीते दस वर्षों में आप एक बदले हुए भारत को देख रहे हैं। आज हर कोई भारत से मित्रता करना चाहता है। चीन भी योग पर विशेष आयोजन करता है और बौद्ध दर्शन की बात करता है। यही भारत की विजय है।”
उन्होंने कहा कि “सिद्ध योगियों की परंपरा को संरक्षित किया जाना चाहिए। ऐसा न हो कि इसे कोई अन्य देश पेटेंट करा ले।”
‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति’, अर्थात सत्य एक ही है, बस उसे प्राप्त करने के मार्ग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं
मुख्यमंत्री ने कहा कि “योग की विशिष्टता को सिद्धि तक पहुंचाने तथा साधना को लोक कल्याण का माध्यम बनाने का कार्य योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी ने संपन्न किया था।” उन्होंने भारतीय योग परंपरा में बाबा गंभीरनाथ जी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत की सिद्ध साधना ही योग की विभिन्न विधाओं का मूल आधार है।

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उन्होंने कहा, “योग की कोई भी विधा हो—हठयोग, राजयोग, लययोग या मंत्रयोग—सभी का उद्देश्य एक ही है। भारतीय मनीषा ने बहुत पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति’, अर्थात सत्य एक ही है, बस उसे प्राप्त करने के मार्ग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी ने योग की विभिन्न अवस्थाओं को पार कर सिद्धि तक पहुंचाया और व्यापक लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि “गोरखपुर विश्वविद्यालय में बाबा गंभीरनाथ जी पर केंद्रित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी अत्यंत प्रासंगिक है।” उन्होंने इस आयोजन के लिए कुलपति प्रो. पूनम टंडन और पूरी आयोजन समिति को बधाई दी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि “गोरखपुर के लिए यह संगोष्ठी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी का साधनात्मक जीवन इसी नगर को समर्पित था।” उन्होंने कहा कि आज भी गोरखनाथ मंदिर में स्थित उनकी समाधि साधकों को प्रेरणा देती है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की योग और आयुर्वेद परंपरा को लेकर कई देशों ने पेटेंट कराने का प्रयास किया था, लेकिन भारत की समृद्ध योग साधना परंपरा ने इसका वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक आधार स्थापित कर दुनिया को योग का सही स्वरूप समझाया।

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कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा, “भारतीय ज्ञान साधना और भक्ति परंपरा में नाथपंथ का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। शिव अवतारी गुरु गोरखनाथ जी ने इसे एक परिष्कृत एवं व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया और योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी ने इस परंपरा को सिद्धि तक पहुंचाया। यह हमारा सौभाग्य है कि इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में हमें योगी आदित्यनाथ जी का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है।” उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की हीरक जयंती के अवसर पर यह संगोष्ठी और भी विशेष हो जाती है।

नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के आचार्य एवं प्रख्यात साहित्यकार प्रो. रविंद्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा, “योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी का संपूर्ण जीवन सत्यता का प्रतीक है। उन्होंने सिद्ध योग परंपरा को न केवल जीवंत बनाए रखा, बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाने का कार्य भी किया।”

इस उद्घाटन सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा चार महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन भी किया गया, जो भारतीय योग परंपरा और योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी के योगदान पर केंद्रित हैं।

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इस संगोष्ठी में विभिन्न विद्वानों और शोधकर्ताओं द्वारा भारतीय योग परंपरा में नाथपंथ और योगीराज बाबा गंभीरनाथ जी के योगदान पर गहन चर्चा की गई। यह आयोजन न केवल योग परंपरा के पुनरुद्धार का माध्यम बना, बल्कि शोध और अकादमिक विमर्श को भी एक नई दिशा देने वाला सिद्ध हुआ।
संगोष्ठी के संयोजक प्रो द्वारका नाथ ने भी अपने विचार रखे। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो हर्ष सिंहा ने किया।

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