सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की उस विवादास्पद टिप्पणी पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि लड़की की केवल छाती पकड़ना और पायजामा का नाड़ा खींचना दुष्कर्म के प्रयास के अंतर्गत नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाते हुए इसे निरस्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय का मानना था कि यह टिप्पणी कानून और मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस
इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे गंभीर मामला मानते हुए इस पर त्वरित कार्रवाई की। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता का उदाहरण है, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।
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कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला एक गंभीर समस्या है, और इसे सुनाते समय न्यायाधीशों ने पूरी तरह से दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, यह फैसला कई महीने बाद सुरक्षित किया गया था, फिर भी इसका असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से सामने आया।
कानून और मानवाधिकारों के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वे आमतौर पर इस स्तर पर स्थगन देने में संकोच करते हैं, लेकिन इस मामले में टिप्पणियाँ पूरी तरह से कानून के दायरे से बाहर और अमानवीय प्रतीत हो रही थीं, इसलिए इन पर स्थगन देना आवश्यक था। अदालत ने इस पर त्वरित कार्रवाई की और उच्च न्यायालय की टिप्पणी को स्थगित कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादास्पद निर्णय
यह मामला दो आरोपियों, पवन और आकाश के खिलाफ था, जिन्हें पहले दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपित किया गया था। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उनका कृत्य दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं था। हाईकोर्ट के अनुसार, यह कृत्य गंभीर यौन हमले के कम गंभीर आरोप के तहत आता है, जो कि समाज के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन दुष्कर्म के दायरे में नहीं आता।
नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न
इस फैसले को लेकर व्यापक आलोचना हुई है क्योंकि अदालत ने नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छूने और उसके पायजामे के नाड़े को खींचने को दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास के तहत नहीं माना। इस फैसले पर विवाद शुरू होते ही सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और इस पर रोक लगाने का आदेश दिया।
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उच्चतम न्यायालय की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद निर्णय पर त्वरित रोक लगा दी। इस कदम से यह साफ हो गया कि अदालत मानवाधिकार और कानून के संरक्षण के प्रति कितनी गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह निर्णय असंवेदनशीलता को दर्शाता है और इसे तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाना चाहिए।
कानूनी दृष्टिकोण
यह मामला केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर जो सवाल उठाए गए हैं, वे समाज में महिला अधिकारों, बच्चों की सुरक्षा और यौन अपराधों के प्रति संवेदनशीलता के मुद्दों पर गंभीर बहस का कारण बने हैं। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि यौन अपराधों के मामलों में अदालतों को संवेदनशीलता और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।