अंग्रेजों की बनाई ‘भारतीय दंड संहिता’ बदलने के लिए SC में याचिका, IPC के स्थान पर ‘एक देश-एक दंड संहिता’ लागू करने की मांग

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दाखिल कर भारतीय दंड संहिता को बदलने की मांग की है. यह याचिका बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दाखिल की है. उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि वह न्यायिक समिति या विशेषज्ञों के निकाय का गठन करे जो भारतीय दंड संहिता 1860 सहित वर्तमान कानूनों की जांच करने के बाद कानून का शासन एवं समानता सुनिश्चित करने के लिए एक देश-एक दंड संहिता तैयार करे.


भाजपा नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका में वैकल्पिक रूप से सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि संविधान का संरक्षक और मौलिक अधिकारों का रक्षक होने के नाते वह, भारत के विधि आयोग को भ्रष्टाचार और अपराध से संबंधित घरेलू और आंतरिक कानूनों का परीक्षण करने और छह महीने के भीतर कठोर व व्यापक भारतीय दंड संहिता एक मसौदा तैयार करने का निर्देश दे सकती है.


न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति बनाने की मांग

वकील अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर इस जनहित याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को एक न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ समिति का गठन करने का निर्देश दिया जाना चाहिए, जो भ्रष्टाचार व अपराध से संबंधित सभी घरेलू व आंतरिक कानूनों का परीक्षण करे और ‘एक राष्ट्र एक दंड संहिता’ का मसौदा तैयार करे, जिसके जरिए कानून का शासन, समानता और समान सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.


विस्तृत व कठोर कानून बनाने की मांग

याचिका में यह भी कहा गया है कि भ्रष्टाचार और अपराध से संबंधित मौजूदा पुराने कानूनों के बजाय एक कड़े और व्यापक भारतीय दंड संहिता (एक राष्ट्र एक दंड संहिता) को लागू करने की व्यवहार्यता का पता लगाने का भी प्रयास किया जाना चाहिए. 161 साल पुराने औपनिवेशिक आईपीसी के कारण जनता को जो चोट लगी है वह बहुत बड़ी है.


रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग, काला धन, मुनाफाखोरी, मिलावट, जमाखोरी, कालाबाजारी, नशीली दवाओं की तस्करी, सोने की तस्करी और मानव तस्करी पर विशिष्ट अध्याय वाले कड़े व व्यापक ‘एक राष्ट्र एक दंड संहिता’ को लागू किए बिना कानून के शासन और जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता और गरिमा को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है.


एक समान सजा के नई IPC जरूरी

अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि अगर यह आईपीसी थोड़ा भी प्रभावी होती तो स्वतंत्रता सेनानियों को नहीं बल्कि कई अंग्रेजों को सजा मिलती. वास्तव में आईपीसी, 1860 और पुलिस अधिनियम, 1861 बनाने के पीछे मुख्य कारण 1857 की तरह के विद्रोह को रोकना था. ऑनर किलिंग, मॉब लिंचिंग, गुंडा एक्ट आदि से संबंधित कानून आईपीसी में शामिल नहीं हैं जबकि ये अखिल भारतीय अपराध हैं. वर्तमान में विभिन्न राज्यों में एक ही अपराध के लिए सजा अलग है. इसलिए सजा को एकसमान बनाने के लिए एक नई आईपीसी जरूरी है.


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