भौतिकी विभाग द्वारा “स्टेलर एवोल्यूशन एंड पल्सेशन मॉडलिंग” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का समापन

मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग द्वारा “स्टेलर एवोल्यूशन एंड पल्सेशन मॉडलिंग” विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का आज सफल समापन हुआ। इस कार्यशाला के चेयरपर्सन भौतिकी विभाग के अध्यक्ष एवं विज्ञान संकाय के डीन, प्रो. शांतनु रस्तोगी थे।
कार्यशाला की शुरुआत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), वाराणसी के डॉ. प्रिंस राज के व्याख्यान से हुई। उन्होंने ब्लैक होल, गैलेक्सियाँ, सक्रिय गैलेक्सियाँ, सेइफर्ट गैलेक्सी, एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियस (AGN), क्वासार और AGN यूनिफिकेशन स्कीम पर विस्तार से चर्चा की। विशेष रूप से, ब्लेज़ार्स पर उनकी चर्चा ने प्रतिभागियों को ब्रह्मांड में होने वाली ऊर्जावान घटनाओं को समझने में मदद की।
इसके बाद, इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) पुणे की पोस्ट-डॉक्टरल फेलो (PDF) डॉ. सुष्मिता दास ने तारों की संरचना को समझाने के लिए हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल (H-R) डायग्राम, वेरिएबल स्टार्स, तारों की नामकरण प्रणाली और पल्सेटिंग वेरिएबल स्टार्स पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रकार के तारे अपने जीवन के अलग-अलग चरणों में किस प्रकार व्यवहार करते हैं और उनकी पहचान कैसे की जाती है।

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डॉ. अनुपम भारद्वाज ने तारकीय ऊर्जा स्रोतों, पोस्ट-में सीक्वेंस इवोल्यूशन, स्टार पल्सेशन, सुपरनोवा, व्हाइट ड्वार्फ और स्टार इवोल्यूशन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने तारों के जीवनचक्र के विभिन्न चरणों को स्पष्ट किया और बताया कि कुछ तारे सुपरनोवा विस्फोट के बाद न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाते हैं, जबकि कुछ व्हाइट ड्वार्फ बनकर अपनी यात्रा समाप्त कर लेते हैं।
डॉ. राहुल आनंद ने नेबुला क्षेत्रों और लेट-टाइप सितारों पर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नेबुला गैस और धूल के विशाल बादल होते हैं, जहां नए तारे जन्म लेते हैं। साथ ही, उन्होंने उन क्षेत्रों की भी पहचान कराई, जहां अणु (मॉलेक्यूल्स) पाए जाते हैं और उनका खगोल भौतिकी में क्या महत्व है। लेट-टाइप सितारों (जैसे रेड जायंट्स) पर चर्चा करते हुए उन्होंने समझाया कि ये तारे अपने जीवन के अंतिम चरणों में प्रवेश कर चुके होते हैं और इनसे मिलने वाली जानकारी ब्रह्मांडीय रासायनिक विकास को समझने में सहायक होती है।

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कार्यशाला का सबसे रोचक सत्र हैंड्स-ऑन सेशन रहा, जिसमें प्रतिभागियों ने 1 सौर द्रव्यमान से 10 सौर द्रव्यमान तक के तारों के विकास को स्वयं कम्प्यूटर मॉडलिंग के माध्यम से देखा और समझा। इस सत्र में प्रतिभागियों ने यह जाना कि तारे अपने जीवनकाल में कैसे विकसित होते हैं और उनके विभिन्न चरणों में कौन-कौन से कारक कार्य करते हैं। इस अभ्यास ने खगोल विज्ञान की व्यावहारिक समझ को और अधिक मजबूत किया।
हैंड्स-ऑन सत्र की समाप्ति के बाद कार्यशाला की संयोजिका डॉ. अपरा त्रिपाठी ने कार्यक्रम का सारांश प्रस्तुत किया और इससे होने वाले लाभों के बारे में बताया। इसके उपरांत सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रभुनाथ प्रसाद ने किया।
पूरे कार्यक्रम में सेंट एंड्रयूज कॉलेज की डॉ. अंजु मौर्या सहित भौतिकी विभाग के सभी आचार्य, सहायक आचार्य तथा शोधार्थी उपस्थित रहे। सभी ने कार्यशाला की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इस तरह के आयोजन खगोल भौतिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और खोज को प्रेरित करते हैं।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र अतुल कुमार सिंह और रंजना जैसवाल ने किया, जबकि संपूर्ण आयोजन में वैभव पाण्डेय, विष्णु पटेल, बख्तावर हमीद अब्दुल्लाह, मीनाक्षी सिंह, प्रियेश कुशवाहा, सुमित त्रिपाठी, अभिनव मिश्र, शुभम और शिवम ने सक्रिय योगदान दिया।

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