उन्नाव पत्रकार कृष्णा तिवारी बदसलूकी मामले में समझौता हो गया है. पत्रकार ने माना कि सीडीओ दिव्यांशु पटेल (IAS Divyanshu Patel) ने जानबूझकर बदसलूकी नहीं की थी, वो एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जिसमे सीडीओ (CDO) की कोई गलती नहीं थी. पत्रकार के मुताबिक अभी 5-6 दिन पहले ही सीडीओ ने चार्ज लिया है जिसके चलते वे यह नहीं जानते कि वह पत्रकार है या भगदड़ मचा रहे अराजक तत्व. कृष्णा तिवारी ने बताया कि सीडीओ ने इस घटना के लिए माफी भी मांगी है, जिससे हम पत्रकार संतुष्ट हैं. वहीं पत्रकार के बयान के बाद अब सवाल उठ रहा है कि सीडीओ के खिलाफ कार्रवाई का सोशल मीडिया पर हो-हल्ला मचाने वाले कहीं बाराबंकी में अवैध मस्जिद गिराने से आहत होने वाला वर्ग तो नहीं ?.
अवैध मस्जिद गिराने के बाद लगातार एक खास वर्ग के निशाने पर हैं दिव्यांशु
दरअसल, सवाल इसलिए उठ रहा है कि दिव्यांशु पटेल ने जबसे बराबंकी में अवैध मस्जिद गिरवाई है तबसे एक खास वर्ग के लगातार निशाने पर हैं. मस्जिद को लेकर लोग सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ धमकाऊ और अभद्र टिप्पणी कर रहे हैं, तमाम फर्जी तस्वीरें और वीडियो वायरल कर माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है. हाल ही में एक शख्स अशरफ अली खान को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. अशरफ पर आईएएस को धमकाने का आरोप है. आरोपी की फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट वायरल हुआ था, जिसके बाद यह कार्रवाई हुई.
The Wire ने जायज कार्रवाई को लेकर फैलाया दुष्प्रचार
यह जानते हुए भी कि मस्जिद पर कार्रवाई जायज थी फिर भी एक खास वर्ग के अलावा कुछ सिलेक्टिव मीडिया संस्थानों ने मामले को खूब तूल दिया, वामपंथी मीडिया पोर्टल ‘The Wire‘ ने दावा किया कि ध्वस्त संरचना वास्तव में मस्जिद थी. इसके बाद यूपी पुलिस ने बाराबंकी अवैध मस्जिद विध्वंस मामले के संबंध में एक वीडियो के माध्यम से गलत सूचना का प्रचार करके समाज में वैमनस्य फैलाने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में द वायर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की.
अपने डॉक्यूमेंट्री में, द वायर ने कहा था कि इलाके के मुस्लिमों ने मस्जिद के विध्वंस का विरोध किया था और कहा था कि पुलिस अधिकारियों ने लाठीचार्ज का सहारा लेकर इसे शांत कराया था. द वायर ने दावा किया था कि बाराबंकी पुलिस ने विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया और उनके धार्मिक ग्रंथों को नाले में फेंक दिया. पोर्टल द्वारा लगाए गए ऐसे आरोपों का खंडन करते हुए बाराबंकी पुलिस ने स्पष्ट किया कि द वायर द्वारा किए गए दावे झूठे थे. इसमें आगे कहा गया कि द वायर अपनी वेबसाइट पर अवैध मस्जिद के विध्वंस के बारे में गलत सूचना का प्रचार करके सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहा था, जिसके चलते उसपर एफआईआर दर्ज की गई.
दिव्यांशु पटेल के आवास पर 100 लोगों से अधिक लोगों की भीड़ ने बोला हमला
अवैध निर्माण को जब वैध साबित नहीं कर पाए तो पहले सोशल मीडिया पर दिव्यांशु पटेल को तारगेट किया गया, वहीं सोशल मीडिया पर दिव्यांशु को जनसमर्थन मिलता देख आरोपी सड़क पर उतर आए और मोहम्मद इश्तियाक द्वारा करीब 100 लोगों की भीड़ जुटाकर उनके आवास पर हमला किया गया. तब प्रशासन ने आऱोपियों पर रासुका लगाने का आदेश दिया लेकिन आक्रमणकारियों के पक्ष में कुछ लोग उतर आए और आदेश को अदालत में चुनौती दी, लेकिन यहां भी उनकी एक न चली और हाईकोर्ट ने मस्जिद पर कार्रवाई को वैध मानते हुए आक्रमणकारी भीड़ को दोषी पाया तथा प्रशासन की कार्रवाई पर अपनी मुहर लगा दी. कुल मिलाकर इससे इनकार नहीं कर सकते कि एक खास वर्ग के निशाने पर रहे दिव्यांशु पटेल पर उन्नाव मामले में खीझ नहीं निकाली गई. घटना को अधिक तूल दिए जाने के कारण ही दिव्यांशु सोशल मीडिया पर लगातार 24 घंटे टॉप ट्रेंड में बने रहे.
जान लीजिए क्या था बाराबंकी मस्जिद मामला ?
दरअसल, 3 जून 2016 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि ‘जनवरी, 2011 के बाद सार्वजनिक मार्गों पर बने सभी धार्मिक ढांचों को हटाया जाएगा और संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट की ओर से दो महीने के भीतर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपनी होगी. जो धार्मिक ढांचे इससे पहले बनाए गए हैं, उनको किसी निजी भूखंड पर स्थानांतरित किया जाएगा या फिर छह महीने के भीतर हटाया जाएगा.’
25 फरवरी 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने इसी पुराने आदेश पर योगी आदित्यनाथ सरकार से जवाब मांगा कि इस आदेश पर क्या कार्रवाई हुई. कोर्ट ने जवाब के लिए सरकार को 17 मार्च 2021 तक का समय दिया. यूपी सरकार ने 11 मार्च को एक आदेश जारी किया. सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि धार्मिक स्थलों के नाम पर किए गए अतिक्रमण हटाए जाएं. 14 मार्च तक जवाब देकर बताएं कि कितनों पर कार्रवाई हुई.
15 मार्च को रामसनेहीघाट के तहसीलदार दया शंकर त्रिपाठी ने जॉइंट मैजिस्ट्रेट दिव्यांशु पटेल के निर्देश पर नोटिस जारी कर विवादित स्थल में रह रहे जिम्मेदार लोगों से जवाब मांगा. जवाब देने के लिए तीन दिन का वक्त दिया गया. 16 मार्च को पुलिस मौके पर जांच पड़ताल के लिए पहुंची. पुलिस ने यहां रह रहे लोगों से उनकी आईडी मांगी जो वो दे ना पाए. अगले दिन ये लोग भाग निकले. जॉइंट मैजिस्ट्रेट ने इसकी जानकारी मिलने पर उन लोगों को ढूंढने और मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. इसके साथ ही विवादित स्थल को सील कर दिया.
19 मार्च को एक और घटना हुई. शुक्रवार शाम को यहां विवादित स्थल पर भारी भीड़ जुटी और तहसील परिसर पर पथराव कर दिया. 31 मार्च तक प्रशासन के पास एक भी कागज नहीं पहुंचा. SDM दिव्यांशु पटेल ने 3 अप्रैल को फैसला सुनाया, जिसमें इस स्थल को तहसील की जमीन पर अवैध कब्जा ठहराया गया. साथ ही विवादित स्थल के पक्षकारों को 35 दिनों का वक्त दिया. इस फैसले को चैलेंज करने के लिए. ऊपरी अदालतों में नियम के मुताबिक आप एक महीने के अंदर ऊपरी अदालत में अपील कर सकते हैं. मगर ऐसा नहीं किया गया. प्रशासन ने इसे देखते हुए 17 मई को इस विवादित स्थल को गिराकर इसे अपने कब्जे में ले लिया.
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