UP में PWD के बाबुओं की गजब कहानी, तीन पर रेप और मर्डर का आरोप, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति के बावजूद, राज्य के पीडब्लूडी विभाग (UP PWD) में गंभीर आरोपों और लंबित जांचों की वजह से विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस समय यूपी पीडब्लूडी के तीन बाबुओं, वीरेंद्र यादव, वीरेंद्र कुमार यादव और ओमप्रकाश पटेल, की चर्चा विभाग में ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) तक पहुंच चुकी है।

बाबुओं पर बलात्कार और हत्या का आरोप

ये तीनों बाबू पिछले 20 वर्षों से एक ही पटल पर कार्यरत हैं और अब तक इनका कोई ट्रांसफर नहीं हुआ है। इन पर कोविड के दौरान एक दलित पीडब्लूडी महिला कर्मी के बलात्कार और हत्या का आरोप है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। जब पिछड़ा वर्ग आयोग ने सख्ती दिखाई और गृह विभाग से जांच के आदेश दिए, तो जाँच का कोई निष्कर्ष सामने नहीं आया।

कार्रवाई की हुई सिफारिश फिर भी कुछ न हुआ 

राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले में कार्रवाई की मांग की थी और आरोपियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की सिफारिश की थी। साथ ही पीडब्लूडी विभाग के राज्य मंत्री कुंवर बृजेश सिंह ने इन बाबुओं का ट्रांसफर करने के आदेश दिए थे, लेकिन चार महीने बाद भी यह आदेश प्रभावी नहीं हो पाए हैं। सूत्रों का कहना है कि तकनीकी कारणों से यह फाइल बार-बार इधर-उधर की जा रही है, जिससे कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। हालांकि, इस तकनीकी गलती को विभाग के प्रमुख सचिव अजय चौहान ने पकड़ लिया है।

बीजेपी विधायक ने सीएम को लिखा शिकायती पत्र

इस मामले में बीजेपी के उन्नाव से विधायक अनिल सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इन तीनों बाबुओं की आय से अधिक संपत्ति की जांच कराने और उन्हें सेवा से बर्खास्त करने की मांग की थी। प्रमुख सचिव ने इस पर आदेश दिए और प्रारंभिक जांच में तीनों बाबुओं को दोषी पाया, लेकिन कार्रवाई अब तक नहीं हुई।

विभाग का पैसा निजी अकाउंट में रख खाया ब्याज

हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। आरोप है कि पुलवामा हमले के दौरान यूपी पीडब्लूडी द्वारा इकट्ठा किया गया धन इन बाबुओं में से एक के व्यक्तिगत खाते में रखा गया था और वर्षों तक इसका ब्याज लिया गया, जिसकी रकम करोड़ों रुपये में बताई जा रही है। हालांकि, इस मामले में भी कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हुई है और न ही किसी ने इस जांच की स्थिति पर कोई स्पष्टता दी है।

आखिर इन दागी अधिकारियों को कौन बचा रहा ?

सूत्रों के अनुसार, जब यह मामला मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचा, तो वहां भी कुछ लोग इन बाबुओं को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। महीनों से लंबित जांच और कोई निष्कर्ष न निकलने से यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि पीडब्लूडी विभाग में कुछ गंभीर गड़बड़ियां चल रही हैं और स्थिति को लेकर विभाग में सुधार की आवश्यकता है। एक ओर योगी आदित्यनाथ की सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोरता की नीति का दावा किया जाता है, लेकिन इस मामले में जांच की धीमी प्रक्रिया और विभागीय लापरवाही सवालों के घेरे में है।

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