मुंबई की विशेष अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट केस (Malegaon Blast Case) में बड़ा फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और किसी भी धर्म में हिंसा का समर्थन नहीं किया गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियां किसी भी आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश करने में विफल रहीं, इसलिए उन्हें बरी किया जा रहा है।
गवाह का दावा
इस केस में सरकारी गवाह रहे मिलिंद जोशी (Milind Joshi) ने अदालत में चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने कहा कि उन पर दबाव डाला गया था कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाम केस में लें। जोशी ने दावा किया कि उन्हें कई दिनों तक हिरासत में रखकर प्रताड़ित भी किया गया।
जांच पर सवाल
पूर्व जांच अधिकारी महबूब मुजावर ने भी इस मामले में बयान देते हुए कहा कि इस केस की जांच को एक खास नैरेटिव की दिशा में मोड़ा गया। उनके अनुसार, तत्कालीन सरकार की मंशा थी कि हिंदुत्व से जुड़ी राजनीति को बदनाम किया जाए और भगवा आतंकवाद का एक राजनीतिक एजेंडा बनाया जाए।
गवाहों पर दबाव और प्रताड़ना के आरोप
गवाह मिलिंद जोशी ने आरोप लगाया कि उन्हें असीमानंद, योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और आरएसएस के अन्य नेताओं के खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया ताकि वे झूठे बयान दें और केस को सांप्रदायिक रंग दिया जा सके।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने साफ कहा कि किसी भी आरोपी को केवल कहानियों या आरोपों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जब तक किसी भी अपराध के ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं मिलते, तब तक न्यायिक व्यवस्था किसी को सजा नहीं दे सकती। कोर्ट के इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है, जहां विपक्ष इस फैसले पर सवाल उठा रहा है तो वहीं समर्थक इसे न्याय की जीत बता रहे हैं।