पिछले हफ्ते डोनाल्ड ट्रम्प ने एक पुराने आर्थिक शब्द को फिर से सुर्खियों में ला दिया ‘टैरिफ़’। टीवी चैनल, अख़बार और सोशल मीडिया पर बस इसी का ज़िक्र था। लेकिन क्या आप जानते हैं, यह सख़्त-सा लगने वाला शब्द मोहम्मद रफ़ी के एक रोमांटिक गीत से भी एक अद्भुत रिश्ता रखता है?
एक सड़क, एक शहर और एक संकेत
पिछले साल की एक रोड ट्रिप के दौरान, लेखक जिब्राल्टर की खाड़ी के किनारे से गुज़र रहा था, तभी रास्ते में एक साइन बोर्ड नज़र आया Tarifa की ओर इशारा करता हुआ। नाम जाना-पहचाना लगा, लेकिन अर्थ जानने पर कहानी रोमांचक हो गई।
समुद्री डाकुओं से राजनीति तक
19वीं सदी के एक अंग्रेज़ पादरी ने इसी बंदरगाह के बारे में लिखा था। यह कभी समुद्री डाकुओं और व्यापारियों का ठिकाना था। यहीं से एक ऐसा शब्द निकला जिसने भाषाओं, महाद्वीपों और सदियों की दूरी तय की Tariff। शुरू में यह सिर्फ़ जहाज़ों पर लगने वाला कर था, लेकिन समय के साथ यह राजनीति, व्यापार और आज ट्विटर पर भी बहस का विषय बन गया।
कश्मीर की झील से जुड़ता सुर
यही वह मोड़ था जहाँ यह यात्रा बॉलीवुड के सुनहरे दौर से मिलती है। 1960 के दशक में फिल्माए गए गीत “ये चाँद सा रोशन चेहरा” में रफ़ी की आवाज़, ओ.पी. नैयर का संगीत और कश्मीर की डल झील का सौंदर्य एक साथ बहे। शूटिंग के दौरान शम्मी कपूर ने रफ़ी से आग्रह किया कि गाने के अंत में ‘तारीफ़ करूँ क्या उसकी’ पंक्ति को कई बार दोहराया जाए।
स्टूडियो में छोटी-सी जंग
संगीतकार नैयर ने शुरुआत में इस बदलाव से इनकार किया, लेकिन रफ़ी ने ज़िद की और इसे रिकॉर्ड करने का सुझाव दिया। रिलीज़ के बाद यह अतिरिक्त पंक्ति शम्मी कपूर के ऑन-स्क्रीन आकर्षण के साथ गूंथकर दर्शकों के दिल में उतर गई। नैयर ने भी स्वीकार किया कि यह बदलाव गाने को और जादुई बना गया।
‘तारीफ़’ से ‘टैरिफ़’ तक
दिलचस्प बात यह है कि हिंदी-उर्दू का शब्द “तारीफ़”(प्रशंसा) क्लासिकल फ़ारसी के शब्द tārīf से आया है, जिसकी जड़ अरबी ‘अरफ़ा’ (जानना) में है। यही मूल आगे यूरोपीय भाषाओं में पहुँचा और ‘टैरिफ़’ बना जो आज कर का अर्थ रखता है।
एक शब्द की सदियों लंबी यात्रा
इस तरह एक ही जड़ से दो मायने जन्मे एक जो प्रशंसा और प्रेम व्यक्त करता है, और दूसरा जो कर और व्यापार से जुड़ा है। अरब से फ़ारस, फ़ारस से यूरोप, स्पेन के समुद्री बंदरगाह तक, और फिर कश्मीर की शिकारे तक ‘टैरिफ़’ और ‘तारीफ़’ की यह यात्रा बताती है कि शब्द इतिहास के ऐसे हिस्से सँभाल कर रखते हैं, जो अक्सर हम भूल जाते हैं।