पिछले छह साल में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में खर्च का हिसाब न देने वाले दलों में से 48 प्रतिशत दलों ने चुनाव आयोग की सुनवाई में अपना पक्ष ही प्रस्तुत नहीं किया। मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) कार्यालय ने अब इन दलों पर कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है। इन दलों का पंजीकरण रद्द करने के लिए आयोग को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
रिपोर्ट जमा करने की समय सीमा और नियम
हर राजनीतिक दल को प्रतिवर्ष 30 सितंबर तक अंशदान रिपोर्ट और 31 अक्टूबर तक आय-व्यय की ऑडिट रिपोर्ट जमा करना अनिवार्य है। लोकसभा चुनाव के बाद 90 दिन और विधानसभा चुनाव के बाद 75 दिन के भीतर चुनाव खर्च का ब्यौरा देना होता है। इसके अलावा, 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे का पूरा हिसाब देना भी जरूरी है।
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नोटिस और सुनवाई का विवरण
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने खर्च का हिसाब न देने वाले 127 दलों को नोटिस जारी किया और 3 अक्टूबर तक अंशदान रिपोर्ट, वार्षिक लेखा परीक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट और निर्वाचन व्यय विवरणी जमा करने का निर्देश दिया। इसके बाद सोमवार से बुधवार तक अलग-अलग दलों को सुनवाई का मौका मिला। इनमें केवल 66 दल ही अपनी रिपोर्ट और पक्ष रख सके, जबकि 61 दल अनुपस्थित रहे।
दस्तावेजों की जांच और वैधता
सुनवाई में उपस्थित दलों की अंशदान रिपोर्ट, ऑडिट रिपोर्ट और निर्वाचन व्यय विवरणी जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों का परीक्षण किया गया। इसके अलावा पार्टियों के मोबाइल नंबर, ई-मेल और पते की वैधता भी जांची गई। अब आयोग उन दलों पर कार्रवाई के लिए अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को भेजेगा, और उनके पंजीकरण रद्द किए जाने की संभावना है।
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चुनाव आयोग का अभियान और सख्ती
चुनाव आयोग ने हाल ही में “ऑपरेशन क्लीन” शुरू किया है, जिसमें कागजों पर पनपने वाले और डमी दलों पर सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। पिछले छह साल में चुनाव न लड़ने वाले दलों के पंजीकरण भी रद्द किए जा चुके हैं। आयोग का कहना है कि ऐसे दल चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने और काला धन खपाने का माध्यम बन सकते हैं। खर्च का हिसाब न देने वाले दलों पर कार्रवाई इसी अभियान का हिस्सा है, जिससे चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और शुचितापूर्ण बनाया जा सके।