चुनाव आयोग (Election Commission) ने सोमवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दूसरे चरण का ऐलान किया। इस चरण के तहत देश के 12 राज्यों में मतदाता सूचियों की व्यापक जांच की जाएगी। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और त्रुटिहीन बनाना है। हालांकि, इस घोषणा के बाद राजनीतिक हलकों में घमासान मच गया है और विपक्षी दलों ने इस कदम की मंशा पर सवाल उठाए हैं।
डीएमके ने आयोग की नीयत पर उठाए सवाल
तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके ने चुनाव आयोग की इस घोषणा पर कड़ा रुख अपनाया है। पार्टी के प्रवक्ता सर्वानन अन्नादुरई ने आरोप लगाया कि ‘एसआईआर को नागरिकता जांच प्रक्रिया की तरह चलाया जा रहा है।’ उन्होंने सवाल उठाया कि असम को इस प्रक्रिया से बाहर क्यों रखा गया है और 2003 को ही कटऑफ वर्ष क्यों तय किया गया है। डीएमके ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहा है और वोट चोरी में शामिल है। पार्टी ने कहा कि इस वजह से आयोग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
टीएमसी ने दी चेतावनी
पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर की प्रक्रिया लागू की जाएगी, जिसे लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने सतर्क प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने कहा कि वह पारदर्शी मतदाता सूची के पक्ष में है, लेकिन अगर वैध मतदाताओं को परेशान किया गया तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। टीएमसी ने उम्मीद जताई कि चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दबाव में आए बिना लोकतांत्रिक तरीके से काम करेगा।
भाजपा ने विपक्ष पर साधा निशाना
वहीं, भाजपा ने विपक्षी दलों के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। पार्टी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है और इसका उद्देश्य फर्जी मतदाताओं को हटाना है। भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा कि, विपक्ष देशहित के हर काम का विरोध करता है। एसआईआर से किसी सही मतदाता का नाम नहीं कटेगा, लेकिन फर्जी नाम जरूर हटेंगे। भाजपा ने उम्मीद जताई कि राज्य सरकारें इस प्रक्रिया में सहयोग करेंगी और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी निभाएंगी।



















































