राहुल गांधी हर एक जिले को ध्यान में रख कर रणनीति से सामाजिक समीकरण साधने की तैयारी, संगठन में बदलाव की बड़ी पहल कांग्रेस पार्टी, जो एक समय पूरे देश में सत्ता की धुरी मानी जाती थी, अब खुद को नए सिरे से खड़ा करने के लिए एक व्यापक संगठनात्मक पुनर्गठन की योजना पर काम कर रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि उसकी नई कार्यकारिणी (कार्यकारी समिति) में 60 फीसदी पद पिछड़े वर्गों (OBC), अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अल्पसंख्यकों को दिए जाएंगे। यह फैसला कांग्रेस की रणनीति में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय की राजनीति को मजबूती देना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मजबूत ओबीसी वोटबैंक में सेंध लगाना है।
राहुल गांधी खुद करेंगे जिलों का दौरा
इस बदलाव को सिर्फ घोषणा तक सीमित नहीं रखा गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने खुद जिम्मेदारी ली है कि वह जिलेवार पार्टी की स्थिति, स्थानीय नेतृत्व की भागीदारी और सामाजिक प्रतिनिधित्व का जायजा लेंगे। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और अब ‘न्याय यात्रा’ के माध्यम से जनता के बीच जाकर संवाद कायम करने के बाद, राहुल गांधी अब संगठनात्मक न्याय को भी प्राथमिकता पर ला रहे हैं।
राहुल ने स्पष्ट किया है कि यह केवल ‘कोटा पॉलिटिक्स’ नहीं है, बल्कि पार्टी में प्रतिनिधित्व को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। राहुल ने कहा, ‘पार्टी में जो लोग दशकों से मेहनत कर रहे हैं, जो जमीनी स्तर पर समाज से जुड़े हैं, उन्हें भी नेतृत्व में भागीदारी मिलनी चाहिए।’
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पिछड़ों के लिए खुलेंगे दरवाज़े
नवीन कार्यकारिणी के गठन में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिले। खासकर ग्रामीण, दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग से आने वाले नेताओं को संगठन में समुचित स्थान दिया जाएगा।
2024 की हार से सीख
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का यह फैसला 2024 लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद आत्ममंथन का परिणाम है। पार्टी को यह एहसास हो चुका है कि जब तक वह सामाजिक न्याय और ज़मीनी प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता नहीं देगी, तब तक भाजपा की मजबूत चुनावी मशीनरी का मुकाबला करना मुश्किल होगा
कांग्रेस एक बार फिर मंथन कर रही
इस कदम को कई जानकार ‘मंडल राजनीति’ के नए संस्करण के रूप में देख रहे हैं। 1990 के दशक में वी.पी. सिंह सरकार द्वारा लागू किए गए मंडल आयोग की सिफारिशों ने देश की राजनीति को सामाजिक न्याय की ओर मोड़ा था। अब कांग्रेस उसी दिशा में एक बार फिर से राजनीतिक विमर्श खड़ा करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस की यह नीति खास तौर पर उत्तर भारत के राज्यों — उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान — में असर डाल सकती है, जहां ओबीसी वोटबैंक निर्णायक होता है। इन राज्यों में भाजपा ने मजबूत पकड़ बना रखी है, खासकर नरेंद्र मोदी की ओबीसी पहचान को प्रमुखता देने के बाद।
संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस की नई टीम में जिला और राज्य स्तर की समितियों में भी यही सामाजिक संतुलन पर काम किया जाएगा। साथ ही, महिला और युवा वर्ग को भी प्राथमिकता दी जाएगी। पार्टी का मानना है कि संगठन को नीचे से ऊपर तक समावेशी बनाना होगा ताकि जमीनी समर्थन मजबूत हो।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा है कि यह निर्णय केवल दिखावा नहीं है, बल्कि इसे कार्यरूप देने के लिए एक समयबद्ध योजना बनाई जा रही है। जल्द ही राज्यों को दिशा-निर्देश भेजे जाएंगे और प्रत्येक प्रदेश कांग्रेस कमेटी से रिपोर्ट तलब की जाएगी।
हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि वह समाज में समान भागीदारी और समरसता लाने की कोशिश कर रही है, न कि किसी को विशेषाधिकार देने की।
Input- Ram Krishna Shukla