Movie Review : ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ और ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’, कहानी अलग संदेश एक

श्रीनारायण सिंह ने ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ के बाद पब्लिक से जुड़े एक और मुद्दे पर फिल्म बनाने का ऐलान किया तो लोगों को वैसी ही उम्मीद लगनी लाजिमी है. बत्ती गुल मीटर चालू कहानी है निजी बिजली कंपनियों के गोलमाल की. टॉयलेट एक प्रेम कथा में ये मुद्दा सामाजिक था, उसमें वो सिचुएशनल कॉमेडी की काफी गुंजाइश थी, जिसे इस मूवी में इमोशनल में बदल दिया गया है, जो एक रिस्क है. बाकी काफी सींस आपको दोनों फिल्मों में एक जैसे मिलेंगे, बदलाव के लिए लव स्टोरी में ट्रांयगल ला दिया गया है और बैकग्राउंड इस बार बरसाना से टिहरी पहुंचा दिया गया है, सो ब्रज भाषा के बजाय पहाड़ी सुनने को मिलेगी मसलन ठहरा, बाल वगैरह.

 

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सुशील (शाहिद कपूर) और सुंदर (दिव्येन्दु) शर्मा दोनों दोस्त हैं, सुंदर सीधा है तो सुशील तिगड़मी. सुंदर एक प्रिंटिंग फैक्ट्री खोलता है तो सुशील एक काइयां वकील है. दोनों की एक दोस्त है नॉटी (श्रद्धा कपूर) जो एक लोकल फैशन डिजाइनर है. दोनों एक एक हफ्ते उसके साथ डेट करते हैं, ताकि एक को वो चुन सके, लेकिन जब वो सीधे सुंदर को चुन लेती है, तो सुशील दोनों से नाराज हो जाता है. इधर सुंदर की फैक्ट्री में 54 लाख का बिजली का बिल आ जाता है, बिजली कंपनी समाधान ना करके उसकी बिजली काट देती है, वकील सुशील उसकी मदद से मना कर देता है तो सुंदर गंगा में कूद कर सुसाइड कर लेता है, तब सुशील की अंतरात्मा जागती है और वो बिजली कम्पनी के खिलाफ जंग छेड़ देता है, पहले पब्लिक में और बाद में कोर्ट में. कोर्ट में कंपनी की वकील होती है गुलनार (यामी गौतम).

 

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यूं श्रीनारायण सिंह ने उत्तराखंड की जातियों और बोली पर काफी रिसर्च की है, शायद की कोई सीन हो जिसमें ठहरा, ठहरी और बाल जैसे शब्द ना बोले गए हों. सब किरदारों के सरनेम भी नौटियाल, पंत, भंडारी आदि हैं. लेकिन उनकी बिजली कंपनियों के गोलमाल की रिसर्च उतना प्रभावित नहीं करती. यूं ऐसे आंदोलनों, यूट्यूब की मदद से वीडियो कैम्पेन आदि पर कई फिल्में बन चुकी हैं. कोर्ट की फूहड़ बहस भी जॉली एलएलबी के स्तर की नहीं है. उस पर शाहिद कपूर की ओवर एक्टिंग खासकर कॉमेडी सींस में नेगेटिव असर छोड़ती है.

 

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लेकिन फिल्म में सुंदर की सुसाइड का इमोशनल टर्न वाकई में ऑडियंस को बांध देता है, तीनों की प्रेम कहानी का एंगल भी शुरुआत में बांधता है, लोकेशंस और सिनेमेटोग्राफी भी तारीफ के काबिल हैं, लेकिन कमी खलती है सिचुएशनल कॉमेडी की, जिसमें वो कई जगह तो वाकई में कमाल करते हैं, लेकिन कई जगह फूहड़ लगता है. अनु मलिक का गोल्ड तांबा वाला गाना समेत दो तीन गाने अच्छे बन पड़े हैं, श्रद्धा कपूर, यामी गौतम और शाहिद तीनों ही एक्टिंग से प्रभावित करते हैं. दिव्येन्दु ने इस बार थोड़ा सीरियस रोल किया है, बाकी फरीदा जलाल, सुधीर पांडे, सुप्रिया और अतुल श्रीवास्तव का और बेहतरीन उपयोग हो सकता था, और बेहतर और सैटायर वाले डायलॉग्स और बिजली कंपनियों पर रिसर्च की ज्यादा जरुरत थी.

 

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