राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर देशभर में आयोजित होने वाले आयोजनों की शुरुआत दिल्ली से कर दी है। मंगलवार, 26 अगस्त को हुए पहले आयोजन में संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने समाज के विभिन्न वर्गों और विदेशी प्रतिनिधियों से संवाद किया। इस अवसर पर उन्होंने संघ की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को साझा करते हुए कहा कि कई दशकों तक संगठन को भारी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन संघ ने समाजसेवा से कभी मुंह नहीं मोड़ा।
विरोध के बावजूद सेवा का संकल्प
मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी स्वयंसेवी संगठन को इतने लंबे समय तक लगातार विरोध का सामना नहीं करना पड़ा जितना RSS को हुआ, फिर भी संघ ने समाज के प्रति समर्पण बनाए रखा। उन्होंने द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि जब उनके आवास पर हमला हुआ था, तब स्वयंसेवक उनकी रक्षा के लिए पहुंचे, लेकिन गुरुजी ने उन्हें वापस लौटा दिया। उनका मानना था कि जब समाज प्रशंसा करता है, तो उसी समाज की आलोचना को भी स्वीकार करना चाहिए।
RSS का मंत्र वसुधैव कुटुंबकम
संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में कहा कि RSS हिंदू के नाते चलता है, लेकिन हिंदू का अपनापन किसी एक के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का मंत्र लेकर स्वयंसेवक समाज में कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि संघ की कार्यप्रणाली में आत्मनिर्भरता है और संघ किसी से चंदा नहीं लेता। स्वयंसेवक साल में एक बार अपनी इच्छा से जो समर्पण करते हैं, वही संघ की पूंजी होती है।
सशक्त समाज के लिए सक्रिय भूमिका की अपील
मोहन भागवत ने समाज को एक स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि केवल भगवान राम और छत्रपति शिवाजी की पूजा करने से राष्ट्र सशक्त नहीं होगा, बल्कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि जो अपनी रक्षा स्वयं करता है, ईश्वर उसी की रक्षा करता है। इसलिए समाज को सशक्त बनाने की जिम्मेदारी हर व्यक्ति की है।