1984 सिख दंगा: नानावटी आयोग की रिपोर्ट में भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे कमलनाथ, स्थिति पर काबू पाने की नहीं की थी कोशिश

कांग्रेस के कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है। ये वही कमलनाथ हैं जिनपर 1984 के सिख विरोधी दंगों में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। सिख दंगों के दाग ने कभी भी कमलानाथ का पीछा नहीं छोड़ा। यहां तक कि बीते पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कमलनाथ को पंजाब का प्रभारी बनाया, लेकिन सिख समाज ने उनका ऐसा विरोध किया कि कमलनाथ को इस्तीफा तक देना पड़ा था। सबसे अहम बात तो ये है कि नानावटी आयोग की रिपोर्ट में कांग्रेस के कमलनाथ को 1984 के सिख दंगों का दोषी माना गया।

 

नानावटी आयोग की रिपोर्ट में कमलनाथ कर रहे थे भीड़ का नेतृत्व

नानावटी आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि कमलनाथ ने उस वक्त स्थिति को काबू में करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया था। रिपोर्ट में इंडियन एक्सप्रेस के स्टाफ रिपोर्टर मोनिश संजय सूरी ने अपने एफीडेविट में बताया कि 1-11-1984 को शाम 4 बजे जब वो गुरुद्वारा रकाब गंज पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कमलनाथ करीब 4000 लोगों का नेतृत्व कर रहे थे और 4000 लोगों की भीड़ गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश कर रही थी।

 

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रिपोर्ट में बताया गया कि थोड़ी ही देर में उस भीड़ में और भी लोग शामिल हो गए और इसी भीड़ में कमलनाथ और वसंत साथे को भी देखा गया। मुख्त्यार सिंह के मुताबिक, कांग्रेस नेताओें के निर्देशों पर पुलिस ने गुरुद्वारे पर कई राउंड फायर किये। आम आदमी पार्टी के नेता और जाने माने वकील एचएस फूलका ने साल 2006 में एक गवाह अदालत के सामने पेश किया जिसका नाम मुख्त्यार सिंह बताया जाता है। इस गवाह के बयान के आधार पर ही कमलनाथ का नाम सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों में शामिल किया।

 

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जानें क्यों भड़का सिख दंगा

6 जून 1984 के दिन सिखों के सबसे पावन स्थल स्वर्ण मंदिर परिसर में भारतीय सेना की कार्रवाई ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के बाद सिख समुदाय के बड़े वर्ग में इसे लेकर रोष था। परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी और सिखों के बीच तनाव बढ़ने लगा। 1984 के ही अक्टूबर में इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद पूरे देश भर में सिख दंगे भड़क गए थे।

 

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कांग्रेसी नेताओं ने किया था नेतृत्व

तत्लाकालीन सरकार ने इन सिख दंगो को जनता का आक्रोश करार दिया था। लेकिन सच तो यह था कि इन दंगों का नेतृत्व तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं ने ही किया था। पंजाब में नरसंहार हुआ. सिखों की संपत्तियां जला डाली गईं। कहा तो ये भी जाता है कि 1984 में सेना की तैनाती में जानबूझकर देरी की गई, पुलिस ने दख़ल देने से इनकार कर दिया।

 

दंगों में कमलनाथ की भूमिका

आरोप है कि इन दंगों में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमल नाथ, एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार ने दंगाइयों का नेतृत्व किया, जिन्होंने सिखों को मारा और उनका सामान लूट लिया। दंगाई साफ़ तौर पर किसी के इशारों पर काम कर रहे थे और संगठित थे। इसके बाद पार्टी में कमलनाथ रॉकेट की तरह ऊपर उठे टाइटलर, भगत और सज्जन कुमार को बचाने की कोशिशें भी अच्छी तरह इतिहास में दर्ज है। पार्टी उन्हें चुनावों में उतारती रही और वे महत्वपूर्ण पदों पर काबिज़ रहे। अपने कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

 

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सिख दंगों के दौरान ऐतिहासिक गुरुद्वारा रकाबगंज को आग लगा दी गई थी। कमलनाथ पर आरोप है कि दिल्ली के रक़ाबगंज गुरुद्वारे पर हुए हमले में वो भी शामिल थे। हालांकि कांग्रेस राज में हुई एसआईटी जांच, रंगनाथ मिश्रा कमीशन जांच में कमलनाथ के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हो पाया। लेकिन सिख संगठन आज भी कमलनाथ पर ऊंगली उठाते हैं।

 

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