डेनमार्क में नक़ाब और बुर्का पहनने पर लगा बैन, नियम तोड़ने पर होगी जेल

 

 

डेनमार्क में नकाब और बुर्का समेत चेहरा ढंकने वाले सभी परिधानों के पहनने पर घोषित कानूनी प्रतिबंध बुधवार से लागू कर दिया गया। इसको लेकर यहां इस कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच तीखी बहस भी हुई। डेनमार्क की संसद ने 31 मई को इस कानून को मंजूरी दी थी। तब इसके पक्ष में 75 और विपक्ष में 30 सांसदों के मत पड़े थे। इसे 1 अगस्त से लागू किया जाना था। इसमें कहा गया था कि सार्वजनिक स्थानों पर नकाब, बुर्का या चेहरे को ढकने वाला अन्य कोई परिधान पहनना दंडनीय अपराध होगा।

 

लागू किए गए कानून के अनुसार, इस पाबंदी का उल्लंघन करने वाले पर एक हजार क्रोनर (10,723 रुपये) का जुर्माना लगाया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार इस पाबंदी का उल्लंघन करता पाया जाएगा तो उस पर पहली बार के मुकाबले 10 गुना अधिक जुर्माना लगाया जाएगा या छह महीने तक जेल की सजा होगी। जबकि किसी को बुर्का पहनने के लिए मजबूर करने वाले को जुर्माना या दो साल तक जेल हो सकती है।

 

 

डेनमार्क, यूरोपीय संघ के सदस्यों में पहला है जिसने ऐसी पाबंदी लागू की है। इस पाबंदी में मुस्लिम महिलाओं को अलग से कोई जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन समझा जाता है कि इसका सबसे ज्यादा असर उन पर पड़ सकता है, क्योंकि पारंपरिक तौर पर बुर्के का इस्तेमाल वही करती हैं। ऑस्ट्रिया, फ्रांस और बेल्जियम में भी ऐसे कानून हैं। बुधवार को यह कानून लागू किए जाने के बाद, डेनमार्क में सत्तारूढ़ उदारवादी पार्टी वेंस्त्रे के मार्कस नुथ ने कहा, कुछ रुढ़िवादी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले लिबास बहुत दमनकारी हैं।
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जबकि पार्टी रिबेल्स कार्यकर्ता समूह की शाशा एंडरसन ने कहा कि यह कानून अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ एक भेदभावपूर्ण कदम है। शाशा ने कहा कि वह इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन करने की योजना बना रही हैं। इस पाबंदी का समर्थन करने वाला समूह भी रैली करने की योजना बना रहा है।

 

डेनमार्क की मौजूदा गठबंधन सरकार शरणार्थियों और आव्रजकों को लेकर भी सख्त नियमों की हिमायती रही है। साल 2016 में उसने एक और कानून बनाया था, जिसमें नए शरणार्थियों को जेवर और सोना जैसे कीमती सामान सौंपने होते हैं, ताकि देश में निवास के दौरान आने वाले खर्च को अदा करने में मदद मिल सके।

 

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