2018 मोदी सरकार क्रूड और रुपये के मामले में मोदी सरकार के लिए अच्छा नहीं रहा. साल की शुरुआत से ही ये दोनों सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यही दोनों सरकार के लिए अच्छे दिन लाते दिख रहे हैं. ग्लोबल और घरेलू संकेत भी यही इशारा कर रहे हैं. इंटरनेशनल मार्केट में जहां क्रूड की कीमतें लगातार गिर रही हैं, वहीं रुपये में मजबूती का रुख है. अंग्रेजी अख़बार फैनैन्शियल एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार जानकार मान रहे हैं कि ये दोनों ट्रेंड आगे भी जारी रहेंगे. ब्रेंट क्रूड 58 डॉलर और रुपया 70 के स्तर तक आ सकता है. ऐसा हुआ तो सरकार को न सिर्फ बैलेंसशीट मजबूत करने में मदद मिलेगी, पेट्रोल और डीजल की कीमतें और घटेंगी, जिससे महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलेगी. बता दें कि मोदी सरकार अपना पहला टर्म देश में बेहतर मैक्रो-इकोनॉमिक स्कोरकार्ड के साथ खत्म करना चाहती है.
मोदी सरकार को शुरूआती 3 सालों में मिला क्रूड का साथ
मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी, उस दौरान जून 2014 में क्रूड 114 डॉलर के स्तर पर था. वहीं, यह जनवरी 2015 में 49 डॉलर, जनवरी 2016 में 31 डॉलर और जून 2017 में 46 डॉलर प्रति बैरल रहा. यानी पहले 3 सालों में क्रूड मोदी के लिए वरदान बन गया. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016—17 तक देश का करंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी का 0.6 फीसदी रह गया.
वहीं, सरकार ने एक्साइज ड्यूटी से भी पैसा कमाया. 3 अक्टूबर 2017 के पहले 3 साल में सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 15.5 प्रति लीटर से बढ़ाकर 22.7 रुपए प्रति लीटर कर दिया, वहीं डीजल पर यह 5.8 प्रति लीटर से 19.7 रूपए प्रति लीटर पर पहुंच गया. 2013-14 में केंद्र सरकार को पेट्रोलियम पर टैक्स से 1.1 लाख करोड़ रुपए की आमदनी हुई, जो साल 2016-17 में बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपए हो गई.
इस साल क्रूड और रूपया बना सरकार के लिए मुसीबत
इस साल की शुरूआत से ही क्रूड और रुपया सरकार के लिए मुसीबत बन गए थे. क्रूड की कीमतें जनवरी में जहां 65 से 66 डॉलर प्रति बैरल थीं, अक्टूबर के शुरू में यह 86 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गईं. यानी करीब 30 फीसदी इजाफा हुआ. वहीं, रुपया भी इस साल 74 डॉलर के करीब पहुंच गया. देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 90 रुपये प्रति लीटर के आस पास पहुंच गई. इन वजहों से जहां सरकार को क्रूड खरीदने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ा, वहीं, आम आदमी को महंगाई का सामना करना पड़ा. इसे लेकर सरकार की आलोचना भी बढ़ गई. पिछले साल अक्टूबर से अबतक सरकार को 2 बार में 4.5 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी भी घटानी पड़ी.
बढ़ गया CAD (Current Account Deficit)
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016—17 तक देश का करंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी का 0.6 फीसदी रह गया. लेकिन क्रूड की कीमतें बढ़ने से 2017-18 में बढ़कर 1.9 फीसदी हो गया. ट्रेड डेफिसिट में बढ़ोत्तरी इसकी मुख्य वजह थी. 2017-18 में ट्रेड डेफिसिट 16000 करोड़ डॉलर हो गया जो 2016-17 में 11240 करोड़ डॉलर रहा था. ट्रेड डेफिसिट बढ़ने की मुख्य वजह इंपोर्ट बिल का बढ़ना था.
50 डॉलर तक गिर सकता है WTI क्रूड
अक्टूबर में 86 डॉलर का स्तर छूने के बाद से क्रूड करीब 25 फीसदी तक सस्ता हो चुका है. एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट, रिसर्च (कमोडिटी एंड करंसी) का मानना है कि ब्रेंट क्रूड आने वाले 1 से डेढ़ महीने में 58 डॉलर प्रति बैरल तक सस्ता हो सकता है. वहीं, WTI क्रूड की कीमतें 50 डॉलर तक गिर सकती हैं. इसे पीछे सबसे बड़ा कारण है कि क्रूड ओवरसप्लाई की सिथति में है और ग्लोबल डिमांड का आउटलुक कमजोर है. आईएमएफ ने भी पिछले दिनों अनुमान दिया था कि ग्लोबली ग्रोथ को लेकर अनिश्चितता है, जिससे क्रूड की डिमांड तेजी से घटेगी.
कम हो सकता है क्रूड इंपोर्ट बिल
बता दें कि भारत अपनी जरूरतों का करीब 82 फीसदी क्रूड खरीदता है. वित्त वर्ष 2017—18 में भारत का क्रूड इंपोर्ट बिल 88 बिलियन डॉलर यानी 8800 करोड़ डॉलर रहा था. क्रूड की कीमतें हाई होने और रुपये में कमजोरी के चलते पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल का अनुमान था कि वित्त वर्ष 2018—19 में क्रूड इंपोर्ट बिल 40 फीसदी के करीब बढ़कर 125 बिलियन डॉलर यानी 12500 करोड़ डॉलर हो सकता है. सीधा मतलब है कि इससे सरकार की बैलेंसशीट बिगड़ती. लेकिन अब एनालिस्ट मान रहे हैं कि क्रूड की कीमतें घटने से इंपोर्ट बिल में सरकार को राहत मिलेगी.
महंगाई से मिलेगी राहत
केडिया कमोउिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि क्रूड के अलावा मैक्रो डाटा भी रुपये को सपोर्ट कर रहे हैं. GST कलेक्शन बेहतर हुआ है. विदेशी निवेशक भी बाजार में लौट रहे हैं. वहीं, क्रूड में नरमी से डॉलर पर दबाव है. दिसंबर तक के आउटलुक की बात करें तो रुपया 70 प्रति डॉलर तक मजबूत हो सकता है. अनुज गुप्ता का भी मानना है कि रुपये में 70 से 71 की रेंज देखी जाएगी. एक्सपर्ट का कहना कि इन दोनों वजहों से इकोनॉमी के मार्चे पर जहां राहत मिलेगी, पेट्रोल और डीजल में मौजूदा स्तर से 3 रुपये तक कमी आ सकती है. इससे महंगाई के मोर्चे पर भी राहत मिलेगी, जो आम चुनाव के पहले सरकार के लिए अछी खबर होगी.
क्रूड और इकोनॉमिक ग्रोथ का कनेक्शन
इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, क्रूड की कीमतें अब 10 डॉलर बढ़ती हैं तो करंट अकाउंट डेफिसिट 1000 करोड़ डॉलर बढ़ सकता है. वहीं, इससे इकोनॉमिक ग्रोथ में 0.2 से 0.3 फीसदी तक कमी आती है.
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