दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों (Delhi Riots) के मामले में 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि इनका मुख्य मकसद हिंदू समुदाय के मन में डर और दहशत पैदा करना था। दिंदुओं को देश छोड़ने की धमकी देना और उनकी संपत्तियों को लूटना व जलाना था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपितों की पहचान मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैजल, राशिद उर्फ मोनू और मोहम्मद ताहिर के तौर पर हुई है। इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 436, 452, 454, 392, 427 और 149 के तहत आरोप तय किए गए हैं।
पूरा मामला 25 फरवरी 2020 का है। आरोप है कि इन लोगों ने हिंसा की और हिंदुओं के घरों में लूटपाट कर उनकी संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया। गवाहों के बयानों को विश्वसनीय पाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने कहा, ‘गैरकानूनी सभा में शामिल दंगाइयों के बयानों से, जैसा कि इन गवाहों ने अपने बयानों में उल्लेख किया है, यह स्पष्ट है कि इसका मकसद हिंदू समुदाय के लोगों के मन में भय और दहशत पैदा करना, उन्हें देश छोड़ने और लूटने के साथ-साथ उनकी संपत्ति जलाना था।’
जगदीश प्रसाद ने एफआईआर में कहा था कि कट्टरपंथी मुस्लिम भीड़ ने उनके बेटे की दुकान पर पेट्रोल बम फेंके थे, जिससे पूरी दुकान जलकर राख हो गई थी। उन्होंने कहा था कि वह और उनके 2 भाई किसी तरह पीछे के गेट से भाग निकले और अपनी जान बचाई। शिकायतकर्ता, उनका बेटा, भतीजा और तीन पुलिस अफसर इस मामले में चश्मदीद गवाह हैं। इन्होंने अपनी गवाही में 10 आरोपितों का नाम स्पष्ट तौर पर लिया।
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गवाहों ने अदालत के समक्ष अपनी गवाही में कहा कि आरोपित 2020 हिंदू विरोधी दंगे में भीड़ में शामिल थे। उन्होंने लूटपाट की, संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया और शिकायतकर्ता की दुकान को आग के हवाले कर दिया। कोर्ट का प्रथम दृष्टया यह मानना था कि गवाहों के बयान पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने कहा, ‘उन्होंने केवल तीन आरोपितों के नाम लिए हैं जिन्हें वे पहले से जानते थे और उन्हें भीड़ में देखा था। अगर उनका इस मामले में किसी व्यक्ति को झूठा फंसाने का कोई इरादा होता तो वे तीनों आरोपितों का ही नहीं, बल्कि सभी आरोपितों का नाम लेते। यह उनके बयानों की सच्चाई को दिखाता है और उनके बयानों को विश्वसनीय बनाता है।’
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