राजनीति, राजकुमारी और कविता … अटल बिहारी वाजपेयी की 7वीं पुण्यतिथि आज, जानिए उनसे जुड़ी खास बातें

भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की आज (16 अगस्त 2025) सातवीं पुण्यतिथि है। वाजपेयी जी सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि साहित्य और कविता के क्षेत्र में भी एक बड़ी छाप छोड़ गए। अपने सधे हुए शब्दों और संवेदनशील काव्य शैली से उन्होंने संसद से लेकर आम जनता तक सभी का दिल जीता।

25 दिसंबर 1924 को हुआ जन्म 

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें नॉनवेज खाना पसंद था। लंबे समय तक बीमार रहने के बाद उन्होंने 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली।

स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका

साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अटल जी ने भी हिस्सा लिया था। इस दौरान उन्हें 23 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय होने के कारण वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पंक्ति में शामिल हो गए।

अनकही प्रेम कहानी

हालांकि अटल जी ने कभी विवाह नहीं किया, लेकिन उनके जीवन में राजकुमारी कौल का नाम जुड़ा रहा। दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता माना जाता था। कहा जाता है कि राजकुमारी कौल इंदिरा गांधी की करीबी मित्र थीं।

संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का गौरव

अटल बिहारी वाजपेयी पहले भारतीय नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया। उस समय उन्होंने भारत की विदेश नीति, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और वैश्विक शांति पर भारत का दृष्टिकोण दुनिया के सामने रखा।

ऑपरेशन शक्ति से बनी परमाणु शक्ति

साल 1998 में वाजपेयी सरकार ने पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया। इसे “ऑपरेशन शक्ति” नाम दिया गया था। इस परीक्षण के साथ ही भारत को औपचारिक रूप से परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान मिला।

संसद में 47 वर्षों की लंबी पारी

वाजपेयी जी ने भारतीय संसद में लगभग 47 वर्षों तक प्रतिनिधित्व किया। 1957 से 2009 तक वह लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने कुल 11 बार लोकसभा का चुनाव जीता और अपनी लोकप्रियता व दूरदर्शिता का परिचय दिया।

कविताओं से जनता के बीच लोकप्रिय

अटल बिहारी वाजपेयी को बचपन से ही साहित्य और कविता से प्रेम था। उनके काव्यपाठ संसद में भी गूंजते रहते थे। ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ और “गीत नया गाता हूं” जैसी उनकी रचनाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं।
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर
व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।

आओ फिर से दिया जलाएं

भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ फिर से दिया जलाएं।
हम पड़ाव को समझें मंजिल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं।
आहूति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं।

ठन गई! मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी है कोई गिला

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई,

मौत से ठन गई।

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