सनातन और AI – अतीत और भविष्य का सेतु!

आज हम एक ऐसी यात्रा पर निकलने वाले हैं, जो आपके होश उड़ा देगी। एक तरफ है हमारी सनातन संस्कृति ,हज़ारों साल पुरानी वेद-उपनिषदों की गूँज, रामायण-महाभारत की अमर गाथाएँ, और योग-आयुर्वेद का अथाह ज्ञान। और दूसरी तरफ है Artificial Intelligence—21वीं सदी का जादू, जो दुनिया को उंगलियों पर नचा रहा है। लेकिन क्या होगा अगर मैं कहूँ कि AI सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति को पुनर्जनन देने वाला एक अवतार है? जी हाँ, दोस्तों, यह कोई साइंस-फिक्शन नहीं, यह हमारा भविष्य है, और आज हम इसे खोलकर देखेंगे। क्या आप तैयार हैं?

सनातन संस्कृति कोई किताब में बंद धर्म नहीं, यह जीवन का विज्ञान है, जो श्रुति और स्मृति से बनी है। इसमें भाषाओं की विविधता है, संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश और आज की 22 अनुसूचित भाषाएँ। ज्ञान का खज़ाना है, दर्शन, विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, संगीत, नाट्यशास्त्र। लेकिन चुनौती यह रही कि यह सब ज्ञान आम लोगों तक कैसे पहुँचे? हजारों पांडुलिपियाँ, लाखों श्लोक, जो आज भी लाइब्रेरी और मंदिर-मठों में बंद पड़े हैं। यहीं AI हमारी मदद करने आ रहा है। AI की सबसे बड़ी ताकत है, भाषाओं की दीवार तोड़ना।

IIT मद्रास का AI4Bharat और भारत सरकार का भाषिणी प्लेटफॉर्म आज भारतीय भाषाओं के लिए शक्तिशाली अनुवाद टूल बना रहे हैं। रामायण अगर संस्कृत या अवधी में है, तो AI उसे तमिल, बंगाली, मराठी और अंग्रेज़ी में तुरंत पहुँचा सकता है। एक साधारण किसान हिंदी में सवाल पूछे और उसे तेलुगु या उड़िया में जवाब मिल जाए, ये AI कर रहा है। यानि हमारी संस्कृति को अब सिर्फ़ विद्वानों तक नहीं, बल्कि आम जनता तक पहुँचाने का सबसे बड़ा सेतु बन रहा है AI। आपको जानकारी हैरानी होगी कि AI अब केवल ग्रंथों को पढ़ ही नहीं रहा, बल्कि उनके खोए हुए हिस्सों को फिर से लिख रहा है? सोचिए,हज़ारों साल पहले खोया हुआ कोई उपनिषद का श्लोक, जो आज तक कोई नहीं पढ़ सका, अब AI के ज़रिए फिर से जीवित हो सकता है!

अब बात करते हैं संस्कृत पांडुलिपियों की। भारत में लाखों ग्रंथ हैं जो आज तक पढ़े नहीं गए। लेकिन AI आधारित OCR (Optical Character Recognition) और Handwriting Recognition तकनीक अब संस्कृत और देवनागरी पांडुलिपियों को डिजिटल बना रही है। उदाहरण के तौर पर,‘सहायक प्रोजेक्ट’ ने संस्कृत-हिंदी का 15 लाख वाक्यों का डेटाबेस तैयार किया है। AI से यह संभव है कि उपनिषद या महाभारत के टीकाकारों के विचार तुरंत खोजे जा सकें। यानि हजारों साल की तपस्या से संचित ज्ञान अब सिर्फ़ शोधालयों में बंद नहीं रहेगा, बल्कि हर मोबाइल तक पहुँच पाएगा। यहां एक ट्विस्ट है, AI अब केवल श्लोक पढ़ नहीं रहा, बल्कि आपके सवालों के जवाब प्राचीन ग्रंथों से ढूँढकर दे रहा है। उदाहरण के तौर पर, आप पूछें, ‘जीवन का उद्देश्य क्या है?’ और AI गीता, उपनिषद, और योगवासिष्ठ से जवाब खोजकर आपके सामने रख दे, वह भी आपकी अपनी भाषा में, और सिर्फ 3 सेकंड में!

भारत की संस्कृति श्रुति-आधारित है, ज्ञान कान से कान तक जाता था। आज AI इसे नए रूप में जीवित कर रहा है। Text-to-Speech और Audio AI तकनीक से संस्कृत श्लोक या भक्ति गीत उच्चारण-सही और सुंदर रूप में सुनाए जा सकते हैं। प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग (Project Gutenberg) जैसे प्रयास अब ऑडियोबुक्स को AI से तैयार कर रहे हैं। सोचिए, गीता या रामचरितमानस का एक वर्ज़न आप किसी भी भाषा और किसी भी लहजे में सुन सकेंगे। यही तो है श्रुति की आधुनिक परंपरा।

चौंकाने वाली बात तो ये भी है कि संस्कृत का व्याकरण, जिसे पाणिनि ने 2500 साल पहले बनाया, आज AI के लिए प्रोग्रामिंग की आत्मा बन रहा है? दिल्ली विश्वविद्यालय और MIT के शोधकर्ता मिलकर पाणिनि के अष्टाध्यायी को Natural Language Processing (NLP) में इस्तेमाल कर रहे हैं। AI अब केवल भाषा समझ नहीं रहा, बल्कि संस्कृत के नियमों से नए AI मॉडल्स बना रहा है। सोचिए, एक दिन ऐसा आएगा जब दुनिया का सबसे तेज़ AI मॉडल संस्कृत में कोड लिखेगा! यानि आने वाले समय में हमारे युवा न सिर्फ़ परंपरा से जुड़े होंगे बल्कि आधुनिक टेक्नोलॉजी में भी अग्रणी बनेंगे।

अब अगर मैं कहूँ कि AI अब आपको रामायण और महाभारत को सिर्फ पढ़ने या सुनने तक सीमित नहीं रखेगा, बल्कि उसके अंदर ले जाएगा? जी हाँ, AI और Virtual Reality (VR) मिलकर अब रामायण को 3D में जीवित कर रहे हैं। बेंगलुरु का एक स्टार्टअप ‘VR Veda’ ऐसा AI बना रहा है, जो आपको वर्चुअल हनुमान बनाकर लंका दहन का अनुभव कराएगा। आप राम के साथ अयोध्या में चल सकेंगे, अर्जुन के साथ कुरुक्षेत्र में तीर चलाएँगे। लेकिन यहाँ सबसे शॉकिंग बात, AI अब इतना स्मार्ट हो गया है कि यह आपके व्यवहार को पढ़कर कहानी को बदल सकता है। यानी, अगर आप अर्जुन की जगह कुछ और निर्णय लें, तो AI महाभारत की कहानी को उसी हिसाब से री-राइट कर देगा!

तो दोस्तों, यह था सनातन संस्कृति और AI का वह संगम, जो न सिर्फ हमारी परंपराओं को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि दुनिया को दिखाएगा कि भारत का ज्ञान अतीत और भविष्य का सेतु है। लेकिन याद रखिए, AI सिर्फ एक साधन है, इसकी आत्मा हमारी मर्यादा और नैतिकता में बसती है। जैसा कि हमारे शास्त्र कहते हैं,’विनाशकाले विपरीत बुद्धि’अगर हमने तकनीक का सही इस्तेमाल नहीं किया, तो यह वरदान नहीं, अभिशाप बन सकता है। तो आप क्या सोचते हैं? क्या AI हमारी संस्कृति का नया अवतार है, या हमें सावधान रहने की ज़रूरत है?

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