सफलता कभी संयोग नहीं होती, वह हमेशा निरंतर परिश्रम और आत्मविश्वास की देन होती है।फ़िल्म अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी के सांसद रवि किशन शुक्ल की कहानी इसी सिद्धांत का जीवंत उदाहरण है। गोरखपुर से सांसद और भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रवि किशन ने इस साल तीनों मोर्चों पर कमाल किया।
उनकी फ़िल्म ऑस्कर के लिए नामांकित हुई, उन्हें ‘बेस्ट सांसद अवॉर्ड’ मिला,और अब उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।यह सब एक साथ होना किसी सामान्य कलाकार के लिए नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के लिए संभव है ,जिसने जीवन को कर्मभूमि बना लिया हो।
गाँव से महानगर तक का सफर
उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के बिसुई गाँव से निकला यह लड़का जब मुंबई पहुँचा,तो उसके पास ना कोई सिफ़ारिश थी, ना संसाधन।थी तो केवल लगन और अभिनय के प्रति दीवानगी।
रोज़मर्रा की परेशानियाँ, रिजेक्शन, भूख और संघर्ष के बीच भी रवि किशन ने अपने सपनों को मुरझाने नहीं दिया। उन्होंने छोटे-छोटे किरदारों से शुरुआत की, टीवी रियलिटी शो में पहचान बनाई,और धीरे-धीरे भोजपुरी सिनेमा को उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया जहाँ से वह अब पूरे देश में सम्मान पा रहा है।
भोजपुरी सिनेमा का चेहरा, संस्कृति का दूत
रवि किशन ने भोजपुरी सिनेमा को वह गौरव दिलाया जो दशकों तक उसकी पहुँच से दूर था।उनकी फ़िल्में सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करतीं — वे संस्कृति, भाषा और लोकजीवन की अभिव्यक्ति बन गईं।‘सैया हमार’, ‘गंगा’, ‘पंडित जी बताइ ना बियाह कब होई’ जैसी फ़िल्मों ने भोजपुरी समाज को आत्मगौरव से भर दिया।
आज जब भोजपुरी भाषा को लेकर हिचकिचाहट होती है, तो रवि किशन संसद में खड़े होकर उसी भाषा में सवाल पूछते हैं यह उस मिट्टी की प्रतिष्ठा का प्रतीक है, जहाँ से वे निकले हैं। वे यह साबित करते हैं कि भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती, सोच बड़ी होनी चाहिए।
सिनेमा से संसद तक
2019 में रवि किशन ने बीजेपी के टिकट पर गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की। संसद में उनकी सक्रियता और स्पष्ट वक्तृत्व ने यह दिखाया कि वह सिर्फ़ एक चेहरा नहीं, बल्कि एक विचार लेकर राजनीति में आए हैं।‘बेस्ट सांसद अवॉर्ड’ इसी राजनीतिक परिपक्वता की पुष्टि करता है।एक कलाकार से जनप्रतिनिधि बनने की यात्रा यह दर्शाती है कि कला और राजनीति दोनों में ‘जन’ ही केंद्र में होने चाहिए रवि किशन की सबसे बड़ी ताक़त है- ‘कनेक्ट’।वह चाहे फ़िल्मी मंच हो या लोकसभा का सदन,उनकी भाषा, उनकी ऊर्जा और उनका आत्मविश्वास सीधे जनता से संवाद करता है।
पुरस्कार नहीं, प्रतीक हैं उपलब्धियाँ
इस साल जो सम्मान रवि किशन को मिले -वे सिर्फ़ पुरस्कार नहीं हैं, बल्कि यह स्वीकारोक्ति है कि भारत बदल रहा है, और अब छोटे कस्बों से निकले चेहरे भी बड़े मंचों पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं।ऑस्कर नामांकन से लेकर फ़िल्मफ़ेयर तक की उपलब्धियाँ यह संदेश देती हैं, कि अगर समर्पण सच्चा हो, तो किसी भाषा या भौगोलिक सीमा की कोई बाधा नहीं रहती।उनका सफर यह भी बताता है कि ग्लैमर की दुनिया में भी जड़ों से जुड़े रहना संभव है।गाँव की मिट्टी, माँ की सीख और भोजपुरी बोलचाल — ये रवि किशन की पहचान का हिस्सा हैं।
रवि किशन का प्रतिनिधित्व
रवि किशन आज उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो सपने देखता है, संघर्ष करता है, और समाज के लिए कुछ लौटाना चाहता है। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि ‘मिट्टी से निकले लोग जब मंच पर पहुँचते हैं, तो वहाँ केवल अभिनय नहीं, आत्मा बोलती है।’राजनीति में उनकी भूमिका यह संकेत देती है, कि मनोरंजन जगत के लोग केवल परदे के नहीं, विचार और समाज के भी नायक बन सकते हैं।आज जब युवा वर्ग सफलता की शॉर्टकट तलाश में है,तो रवि किशन का जीवन संदेश देता है -कि कोई शॉर्टकट नहीं होता, केवल कर्म और अनुशासन ही मंज़िल तक ले जाते हैं।
रवि किशन की यात्रा केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस नई भारत कथा की है जिसमें गाँव, भाषा, संस्कृति और सिनेमा — सभी मिलकर आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर बनाते हैं। वह आज सिर्फ़ अभिनेता या सांसद नहीं, बल्कि उस विचार के प्रतीक हैं जो कहता है -जड़ें गाँव में हों तो शाखाएँ आसमान छूती हैं।