पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम लागू किये बिना सबको समान अवसर मिलना असंभव, भाजपा नेता का प्रधानमंत्री को पत्र

आज 26 नवंबर है, और हर साल इस दिन को हम बतौर ‘संविधान दिवस’ (Constitution Day) मनाते हैं. 26 नवंबर को राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में भी जाना जाता है. 26 नवंबर, 1949 को इसी दिन देश की संविधान सभा ने वर्तमान संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था. हालांकि इसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था. वहीं संविधान दिवस के दिन भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने पूरे देश में समान पाठ्यक्रम लागू करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उपाध्याय का कहना है कि इसे लागू किए बिना सबको समान अवसर मिलना संभव नहीं है. उपाध्याय ने अपने पत्र में लिखा…


माननीय प्रधानमंत्री जी, संविधान दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं. इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान संविधान की मूल भावना और संविधान के मुख्य उद्देश्य की तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ.


समता, समानता, समरसता और समान अवसर हमारे संविधान की आत्मा है तथा सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय संविधान का मुख्य उद्देश्य है लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक लद्दाख से लक्षद्वीप और कच्छ से कामरूप तक देश के सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा अर्थात एक देश एक शिक्षा लागू नहीं की जाए. वर्तमान समय में लागू असमान शिक्षा प्रणाली संविधान की मूल भावना के बिलकुल विपरीत है और समतामूलक सामाज के निर्माण के बजाय जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, वर्गवाद, वर्णवाद और संप्रदायवाद को बढ़ाती है.


संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिक समान हैं, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप और जन्मस्थान के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता है, तथा आर्टिकल 16 के अनुसार नौकरियों में सबको समान अवसर दिया जाएगा. आर्टिकल 17 शारीरिक और मानसिक छूआछूत को प्रतिबंधित करता है और आर्टिकल 19 प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का अधिकार देता है. आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है. आर्टिकल 38(2) के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए. आर्टिकल 39 के अनुसार बच्चों के समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास के लिए कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों के शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए विशेष कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार का कर्तव्य है. आर्टिकल 51(A) के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त करना, आपसी भाईचारा मजबूत करना तथा वैज्ञानिक और तार्किक सोच विकसित करना भी केंद्र और राज्य सरकार का नैतिक कर्तव्य है लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली संविधान की उपरोक्त भावनाओं के बिलकुल विपरीत है.


वर्तमान समय में स्कूलों की 5 केटेगरी है और किताब भी 5 प्रकार की है. आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, निम्न आय वर्ग (LIG) बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, मध्य आय वर्ग (MIG) बच्चों की किताब और सिलेबस अलग, उच्च आय वर्ग (HIG) बच्चों की किताब और सिलेबस अलग तथा संभ्रांत वर्ग (एलीट क्लास) के बच्चों की किताब और सिलेबस बिल्कुल ही अलग है. यदि बोर्ड के हिसाब से देखें तो CBSE की किताब और सिलेबस अलग, ICSE की किताब और सिलेबस अलग, बिहार बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग, बंगाल बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग, असम बोर्ड की किताब और सिलेबस अलग तथा गुजरात बोर्ड की किताब और सिलेबस सबसे अलग है, जबकि IAS, JEE, NEET, NDA, SSC, CDS, TET और CLAT सहित अधिकांश एग्जाम राष्ट्रीय स्तर पर पर होते हैं और पेपर भी एक होता है, परिणाम स्वरूप देश के सभी छात्र-छात्राओं को समान अवसर नहीं मिलता है.


इस समय देश में 5+3+2+2+3 शिक्षा व्यवस्था लागू है अर्थात 5 साल प्राइमरी, 3 साल जूनियर हाईस्कूल, 2 साल सेकंडरी, 2 साल हायर सेकंडरी और 3 साल ग्रेजुएशन. यह व्यवस्था वर्तमान परिप्रेक्ष में बिलकुल अप्रभावी और अवांछित है इसलिए इसके स्थान पर 5+5+5 शिक्षा व्यवस्था लागू करना चाहिए अर्थात 5 साल प्राइमरी, 5 साल सेकंडरी और 5 साल ग्रेजुएशन. प्राइमरी और सेकंडरी का सिलेबस पूरे देश में एक समान होना चाहिए और सभी बच्चों के लिए इसे अनिवार्य करना चाहिए. संविधान के आर्टिकल 345 और 351 की भावना के अनुसार 10वीं तक त्रिभाषा का अध्ययन सभी बच्चों के लिए अनिवार्य होना चाहिए.


जिस प्रकार पूरे देश में “एक देश-एक कर” लागू किया गया उसी प्रकार “एक देश-एक सिलेबस” भी लागू किया जा सकता है. पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम भले ही अलग-अलग हो लेकिन सिलेबस पूरे देश में एक समान किया जा सकता है. “वन नेशन वन एजुकेशन” लागू करने के लिए GST कौंसिल की तर्ज पर NET (नेशनल एजुकेशन काउंसिल) बनाया जा सकता है (HRD मिनिस्टर NEC के अध्यक्ष और सभी राज्यों के शिक्षामंत्री NEC के सदस्य) यदि पूरे देश के लिए एक शिक्षा बोर्ड नहीं बनाया जा सकता है तो केंद्रीय स्तर पर एक शिक्षा बोर्ड और राज्य स्तर पर एक शिक्षा बोर्ड बनाना चाहिए.


माननीय प्रधानमंत्री जी, “एक देश एक शिक्षा” लागू करने से संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेगा, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप लिंग और जन्मस्थान के आधार पर चल रहा भेदभाव समाप्त होगा तथा आर्टिकल 16 के अनुसार नौकरियों में सबको समान अवसर मिलेगा. समान पाठ्यक्रम लागू करने से आर्टिकल 17 की भावना के अनुसार शारीरिक और मानसिक छूआछूत समाप्त होगा और आर्टिकल 19 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का समान अवसर मिलेगा.


आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है इसलिए पढ़ने-पढ़ाने की भाषा भले ही अलग हो सिलेबस पूरे देश का एक समान होना चाहिए. “एक देश एक पाठ्यक्रम” लागू करने से आर्टिकल 38(2) की भावना के अनुसार समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने में मदद मिलेगी और आर्टिकल 39 के अनुसार बच्चों का समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास होगा तथा आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों का शैक्षिक और आर्थिक विकास होगा.


समान शिक्षा से आर्टिकल 51(A) के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त होगी, आपसी भाईचारा मजबूत होगा तथा वैज्ञानिक तार्किक और एक जैसी सोच विकसित करने में मदद मिलेगी और देश की एकता अखंडता मजबूत होगी. इसलिए आपसे विनम्रता पूर्वक आग्रह है कि पूरे देश में समान शिक्षा लागू करने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाएं. इस विषय पर मैं आपसे मिलकर चर्चा करना चाहता हूँ इसलिए अपना बहुमूल्य 10 मिनट समय देने की कृपा करें.


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