दिल्ली यूनिवर्सिटी में ‘इस्लाम’ पर नए कोर्स की तैयारी, आलोचकों ने कहा- ‘हिंदू धर्म’ पर क्यों नहीं

दिल्ली विश्वविद्यालय में इस्लाम पर नया कोर्स शुरू किए जाने पर सवाल उठाया गया है कि कि अन्य धर्मों को क्यों छोड़ा जाए? यहां के राजनीति विज्ञान विभाग ने ‘इस्लाम और इंटरनेशनल रिलेशन’ विषय को लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स शूरू करने का प्रस्ताव दिया है।

 

एकेडमिक काउंसिल की रजामंदी का इंतजार

मिली जानकारी के मुताबिक, अब राजनीति विभाग को इस विषय पर एकेडमिक काउंसिल की रजामंदी का इंतजार है। सूत्रों ने बताया कि इस कोर्स में स्टूडेंट्स को इस्लाम का इतिहास, संस्कृति और धर्मशास्त्र के बीच रिलेशन को समझने के लिए उसके कॉन्सेप्ट, थ्योरी और फिलोसोफिकल मुद्दों के बारे में पढ़ाया जाएगा।

 

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बता दें कि इस्लाम का कॉन्सेप्ट और थ्योरी की कई परते हैं और उसके कई आयाम भी हैं। ऐसे में इस कोर्स के स्टूडेंट्स को पढ़ाया जाएगा कि इसकी हेल्प लेकर कैसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत बनाया जा सकता है।

 

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इस कोर्स को डिजाइन करने वाले प्रोफेसर संजीव कुमार एचएम ने उम्मीद जताई है कि कोर्स को एकेडमिक कमिटी में मंजूरी मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि स्टैंडिंग कमिटी ने इसके लिए हामी भर दी है हालांकि उनका सुझाव है कि अन्य धर्मों पर भी इसी तरह के कोर्स तैयार किए जाने चाहिए।

 

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इस्लाम पर नए कोर्स को लेकर उठा सवाल

सूत्रों का कहना है कि डीयू के एकेडमिक अफेयर्स की स्टैंडिग कमेटी ने हाल ही में एक मीटिंग की, जिसमें डॉक्टर गीता भट्ट ने यह सवाल उठाया कि अन्य धर्मों को क्यों छोड़ा जाए? उनका कहना है कि इस्लाम और इंटरनेशनल रिलेशन ही क्यों? उन्होंने कहा कि इंटरनेशल रिलेशन के संदर्भ में दूसरे धर्मों को पढ़ाई क्यों नहीं कर सकते?

 

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संजीव कुमार एचएम कहना है कि इस्लाम और इंटरनेशनल रिलेशन पर स्टडी की काफी मांग है और इसके कई कारण भी हैं। उनके मुताबिक, दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इंटरनेशनल रिलेशंस का पूरा कोर्स… सबकुछ इसी पर आधारित है कि इस्लाम क्या है और इसे बचाना या इसके लिए लड़ना क्यों जरूरी है?

 

उनका कहना है कि हम अन्य धर्मों और इंटरनेशनल रिलेशन पर पूरा कोर्स तैयार नहीं कर सकते हैं। क्योंकि विचारों को लेकर जिस स्पेस की संभावना इस्लाम में है वह अन्य धर्मों में नहीं है।

 

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