दिल्ली-एनसीआर से लेकर यूपी तक घुला जहर! हवा की गुणवत्ता ‘खतरनाक’, AQI 500 के पार

दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने 11 नवंबर से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP)-III लागू कर दिया है, जिसके तहत कई सख्त प्रतिबंधों को लागू किया गया है। गौरतलब है कि AQI 301-400 ‘बहुत खराब’ और 401-500 ‘गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है। सोमवार सुबह भी राजधानी में घना स्मॉग छाया रहा और औसत AQI 359 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है।

कई इलाकों में हवा गंभीर स्तर पर

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक, बवाना में सोमवार सुबह AQI 427 दर्ज किया गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। वहीं NSIT द्वारका में AQI 225 पाया गया, जो तुलनात्मक रूप से कम है। इंडिया गेट और कर्तव्य पथ के आसपास प्रदूषण स्तर 341 रहा। इसके अलावा चांदनी चौक का AQI 383, ITO 394, पंजाबी बाग 384 और आनंद विहार 383 दर्ज किया गया। राजधानी में कई जगह जहरीली धुंध छाई रही, जबकि तापमान भी करीब 9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

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GRAP-III के तहत कड़े प्रतिबंध लागू

प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए GRAP-III के नियमों को सख्ती से लागू किया गया है। इसके तहत गैर-जरूरी निर्माण गतिविधियों पर रोक, BS-III पेट्रोल और BS-IV डीजल चार पहिया वाहनों के आवागमन पर पाबंदी और कक्षा 5 तक के स्कूलों में हाइब्रिड या ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई है। साथ ही नॉन-क्लीन ईंधन पर चलने वाले औद्योगिक कार्यों और गैर-आपातकालीन डीजल जनरेटर के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।

यूपी के शहरों में भी प्रदूषण चरम पर

वही उत्तर प्रदेश के के कई प्रमुख शहर गंभीर वायु प्रदूषण की जद में हैं। लखनऊ का AQI 152 ‘अस्वास्थ्यकर’, जबकि गाजियाबाद का AQI 430 ‘खतरनाक’ स्तर पर पहुंच गया है। आगरा में AQI 201 और नोएडा में 312 रिकॉर्ड किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। हापुड़ जैसे शहरों में तो AQI 549 तक पहुंचा, जिससे वे दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो गए। राज्यभर में औसत AQI 200–300 की सीमा में बना हुआ है, जो ज्यादातर क्षेत्रों में खतरनाक वायु गुणवत्ता को दर्शाता है।

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प्रमुख कारण और बढ़ता स्वास्थ्य-आर्थिक खतरा

वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, बायोमास और पराली जलाना प्रदूषण के मुख्य कारण बने हुए हैं। NCAP लागू होने के बावजूद 15 नॉन-अटेनमेंट शहरों में सुधार सीमित है। बढ़ते प्रदूषण से स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है, खासकर सांस और हृदय रोगों का जोखिम बढ़ा है। साथ ही उत्पादकता में कमी और चिकित्सा खर्च बढ़ने से आर्थिक नुकसान भी सामने आ रहा है।

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