कसरवल कांड से कैबिनेट तक, डॉ. संजय निषाद की अनकही कहानी

निषाद पार्टी (Nishad Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री डॉ. संजय निषाद (Dr. Sanjay Nishad) ने हाल ही में ब्रेकिंग ट्यूब के एक विशेष पॉडकास्ट में अपनी राजनीतिक और सामाजिक यात्रा पर विस्तार से बात की। पूर्वांचल की धरती से उभरे इस क्रांतिकारी नेता ने निषाद समाज और उससे जुड़ी जातियों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई को अपनी जिंदगी का मिशन बनाया है। डॉ. निषाद ने बताया कि उनकी यात्रा बेहद चुनौतीपूर्ण रही। नदी किनारे बसे निषाद समुदाय की कठिनाइयों और संघर्षों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, हमारा समाज सदियों से उपेक्षित रहा है। रामायण में केवट और निषाद राज का गौरवशाली इतिहास है, लेकिन आज भी यह समाज सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। उन्होंने कसरवल कांड को अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण मोड़ बताया, जिसने उन्हें सामाजिक आंदोलन से राजनीति की ओर प्रेरित किया।

राजनीतिक यात्रा की शुरुआत

डॉ. निषाद ने बताया कि शुरुआत में उनके पास न तो पूंजी थी, न कार्यकर्ता और न ही कोई स्पष्ट भविष्य। फिर भी, उन्होंने निषाद समाज को एकजुट करने और उनकी आवाज को बुलंद करने के लिए राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद का गठन किया। इसके बाद निषाद पार्टी की स्थापना हुई, जिसने सामाजिक ऊर्जा को राजनीतिक शक्ति में बदलने का काम किया। उन्होंने कहा, इतिहास राजनीति की मां है और आंदोलन इसका पिता। सामाजिक संगठन मीठा जहर है, लेकिन अगर इसे राजनीतिक दल के साथ जोड़ा जाए, तो यह शक्ति बन जाता है।

सामाजिक न्याय की लड़ाई

डॉ. निषाद ने निषाद समाज की उपेक्षा और उनके खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने 193 जातियों को उत्तर प्रदेश में और 578 जातियों को देशभर में क्रिमिनल कास्ट घोषित किया था, जिसके चलते निषाद समुदाय की जमीन और रोजी-रोटी छिन गईउन्होंने संविधान के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि संविधान ही सामाजिक न्याय का आधार है और इसके जरिए ही समाज को उसका हक मिल सकता है

राजनीतिक गठबंधन और चुनौतियां

पॉडकास्ट में डॉ. निषाद ने अपनी राजनीतिक रणनीति और गठबंधनों पर भी खुलकर बात की। 2017 और 2018 के उपचुनावों में निषाद पार्टी ने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया, जिसके परिणामस्वरूप गोरखपुर और फूलपुर जैसी सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल हुई। हालांकि, 2019 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन किया, जिसके तहत उनके बेटे प्रवीण निषाद को संत कबीर नगर से टिकट मिला और वह सांसद बने।

उन्होंने बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को विचारधारा पर आधारित बताया और कहा, मोदी और योगी के नेतृत्व में सामाजिक न्याय संभव है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ मुद्दों पर उनकी पार्टी को वह महत्व नहीं मिला, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। खासकर मंत्रालयों में बजट और प्राथमिकता के मामले में निषाद समाज की जरूरतों को और ध्यान देने की जरूरत है।

अफसरशाही पर सवाल

डॉ. निषाद ने अफसरशाही के प्रभाव पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारी जनप्रतिनिधियों की बातों को गंभीरता से नहीं लेते, जिसके चलते नीतियों का सही ढंग से कार्यान्वयन नहीं हो पाता। उन्होंने सुझाव दिया कि बीजेपी को एक समन्वयक नियुक्त करना चाहिए, जो सहयोगी दलों और सरकार के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित करे

2027 के लिए रणनीति

आगामी 2027 के विधानसभा चुनावों पर टिप्पणी करते हुए डॉ. निषाद ने कहा कि निषाद समाज का 18% वोट बैंक उत्तर प्रदेश में निर्णायक है।उन्होंने दावा किया कि सपा, बसपा और कांग्रेस सत्ता में नहीं आएंगे, क्योंकि निषाद समाज अब जागरूक हो चुका है। उन्होंने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि निषादों को उनका हक दिलाने के लिए संविधान सम्मत आरक्षण और योजनाएं जरूरी हैं।

निजी जीवन और प्रेरणा

डॉ. निषाद ने अपने निजी जीवन के बारे में भी बताया। उनके पिता सूबेदार मेजर थे, जिन्होंने भारत-पाक और भारत-चीन युद्धों में हिस्सा लिया था। उनकी शिक्षा और उनके परिवार की मेहनत ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। उन्होंने अपनी पत्नी मालती निषाद की तारीफ करते हुए कहा कि उनके समर्थन और धैर्य के बिना यह यात्रा संभव नहीं थी।

विवादों पर जवाब

सोशल मीडिया पर वायरल हुए कुछ बयानों और वीडियो पर सफाई देते हुए डॉ. निषाद ने कहा कि उनके बयान अक्सर गलत संदर्भ में पेश किए जाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका मकसद समाज में सकारात्मकता और मनोबल बढ़ाना है। उन्होंने कहा, हम गंगा पुत्र हैं, हमें पानी से डर नहीं लगता। हमारा समाज जाग चुका है और अब वह धोखा नहीं खाएगा। वही अंत में डॉ. निषाद ने निषाद समाज और अन्य उपेक्षित जातियों से एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई तभी पूरी होगी, जब समाज संवैधानिक अधिकारों के लिए संगठित होकर लड़े।

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