कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के वरिष्ठ नेता और सांसद मनीष तिवारी (Manish Tiwari) ने संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation Sindoor) पर हुई बहस के दौरान खुद को वक्ताओं की सूची से बाहर रखे जाने पर नाराजगी जताई है। तिवारी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा करते हुए पार्टी नेतृत्व पर अप्रत्यक्ष निशाना साधा। उन्होंने 1970 की फिल्म पूरब और पश्चिम के देशभक्ति गीत ‘है प्रीत जहां की रीत सदाके बोल साझा करते हुए लिखा, ‘भारत की बात सुनाता हूं। उनके इस पोस्ट को पार्टी के फैसले पर नाराज़गी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
है प्रीत जहां की रीत सदा
मैं गीत वहां के गाता हूं
भारत का रहने वाला हूं
भारत की बात सुनाता हूं
Hai preet jahaan ki reet sada
Main geet wahaan ke gaata hoon
Bharat ka rehne waala hoon
Bharat ki baat sunata hoon
– Jai Hind pic.twitter.com/tP5VjiH2aD
— Manish Tewari (@ManishTewari) July 29, 2025
प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे तिवारी और थरूर
गौरतलब है कि मनीष तिवारी और शशि थरूर हाल ही में उस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, जिसे सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेशों में भेजा था। इस प्रतिनिधिमंडल का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की एकजुटता दर्शाना और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद को उजागर करना था।
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मनीष तिवारी ने मांगा था लोकसभा में बोलने का मौका
सूत्रों के अनुसार, मनीष तिवारी ने लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान बोलने की अनुमति मांगी थी। लेकिन उन्हें वक्ताओं की सूची में जगह नहीं दी गई। इससे उनकी नाखुशी सार्वजनिक हो गई। उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए यह संकेत दिया कि वे भारत की बात कहना चाहते थे, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला।
थरूर की असहमति और मौनव्रत
दूसरी ओर, शशि थरूर ने पार्टी नेतृत्व के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए लोकसभा बहस में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। थरूर ने स्पष्ट किया कि वे ऑपरेशन सिंदूर को एक सफल सैन्य अभियान मानते हैं और इस पर सरकार की आलोचना करने वाली पार्टी लाइन से सहमत नहीं हैं। उन्होंने साफ कहा कि अगर उन्हें बोलने का मौका मिला होता, तो वे अपना समर्थन दोहराते। जब पत्रकारों ने इस मुद्दे पर उनसे सवाल पूछा, तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा, “मौनव्रत, मौनव्रत।”
कांग्रेस में भीतरी मतभेदों के संकेत
इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस पार्टी के भीतर नीतिगत मतभेदों और संवादहीनता की ओर संकेत किया है। पार्टी के दो अनुभवी नेता, एक बहस से बाहर और दूसरा सार्वजनिक रूप से असहमति जताते हुए – यह स्थिति पार्टी की सामूहिक रणनीति और संगठनात्मक निर्णयों पर सवाल खड़े करती है।