कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच पाकिस्तान की विपक्षी पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान (Maulana Fazlur Rehman) ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत से पहले पाकिस्तान को अफगानिस्तान के साथ अपने संबंध सुधारने की जरूरत है।
…तो आज अफगानिस्तान पाकिस्तान का समर्थक होता
इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मौलाना रहमान ने कहा, ‘हम अक्सर कश्मीर की बात करते हैं, लेकिन उससे पहले हमें यह सोचना चाहिए कि अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते बेहतर क्यों नहीं हो पाए?” उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में जाहिर शाह से लेकर अशरफ गनी तक की सभी सरकारें भारत समर्थक रही हैं, और पाकिस्तान ने कभी रणनीतिक दृष्टिकोण से वहां प्रभाव नहीं बनाया।
ظاہر شاہ سے لے کر اشرف غنی تک افغانستان میں پرو انڈین حکومتیں رہی ہیں،ایک امارت اسلامی کی حکومت ہے جس کو ہم سفارتی کامیابی کے ساتھ پرو پاکستانی بنانے میں کامیاب ہوسکتے تھے، لیکن ہم نے ان کو بھی دھکیل دیا ہے،بارڈر پر دونوں طرف مال بردار گاڑیوں کی طویل لائن ہے اور عوام کا مال برباد… pic.twitter.com/sRfwuZbyam
— Jamiat Ulama-e-Islam Pakistan (@juipakofficial) May 1, 2025
उन्होंने तालिबान के नेतृत्व वाली मौजूदा अफगान सरकार को ‘अमारत-ए-इस्लामी’ कहकर संबोधित किया और कहा कि इसे प्रो-पाकिस्तानी बनाने का मौका था, लेकिन पाकिस्तान ने वह अवसर भी गंवा दिया। अगर हम सही राजनीति करते, तो आज अफगानिस्तान पाकिस्तान का समर्थक होता।
सीमावर्ती व्यापार पर जताई चिंता
फजलुर रहमान ने पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों और सीमावर्ती व्यापार को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि बॉर्डर पर माल से लदी गाड़ियों की लंबी कतारें हैं और अवाम का माल बर्बाद हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह सब तब तक चलता रहेगा जब तक सैन्य दृष्टिकोण के साथ राजनीतिक और आर्थिक सोच को नहीं जोड़ा जाएगा।
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उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था उस समय गिर रही है जब इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं तरक्की कर रही हैं।
फौज को सीधे संबोधित करते हुए मौलाना ने कहा, ‘इकरार कर लें कि मौजूदा हालात में आपकी पीठ पर कोई मजबूत सियासी ताकत नहीं है।’ उन्होंने कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर जहां पूरा देश एकजुट है, वहीं अफगानिस्तान के मुद्दे पर ऐसा नहीं हो रहा क्योंकि दोनों की ज़मीनी हकीकत अलग-अलग है। अंत में उन्होंने कहा कि सिर्फ प्रोपेगैंडा से काम नहीं चलेगा, पाकिस्तान को अपनी राजनीति और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा।
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