सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahbad Highcourt) के जज जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने एक जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने इस मामले में 30 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे अब सुनाया गया। कोर्ट ने कहा कि यदि प्रक्रिया अवैध लग रही थी तो वर्मा को जांच में भाग ही नहीं लेना चाहिए था।
कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले जांच में भाग लिया और बाद में उसे चुनौती दी, जिससे प्रतीत होता है कि उन्होंने किसी अनुकूल परिणाम की उम्मीद में प्रक्रिया का हिस्सा बने रहने का निर्णय लिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय मात्र एक औपचारिक डाकघर नहीं है, बल्कि गंभीर आरोपों की सूचना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी है।
दिल्ली स्थित आवास से मिली थी संदिग्ध नकदी
मार्च 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट में पदस्थ रहने के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में आग लगने की घटना में बड़ी मात्रा में आधी जली हुई नकदी बरामद हुई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने एक तीन सदस्यीय इन-हाउस समिति गठित की थी, जिसमें न्यायमूर्ति शील नागू, न्यायमूर्ति जीएस संधवालया और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 55 गवाहों के बयान और वीडियो-फोटो साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार को इस नकदी की जानकारी थी।
महाभियोग की प्रक्रिया के बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
इन-हाउस जांच रिपोर्ट के बाद सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने की सलाह दी थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसके बाद यह मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंचाया गया, और अब लोकसभा व राज्यसभा के कुछ सांसदों द्वारा महाभियोग का नोटिस भी भेजा गया है। इस पूरी प्रक्रिया को चुनौती देने के लिए जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन अब शीर्ष अदालत ने न केवल उनकी याचिका को खारिज किया, बल्कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया की वैधता पर भी अपनी मुहर लगा दी।