जानें अखिलेश-मायावती के गठबंधन की 7 बड़ी शर्तें, जिनके आधार पर होगा गठबंधन

2019 लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के बीच गठबंधन का एलान हो चुका है, रही औपचारिकता कल पूरी हो जाएगी जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती साझा प्रेस कांफ्रेस करते गठबंधन के भविष्य को लेकर बड़े एलान करेंगे. वहीं गठबंधन को कई सवाल हैं जो सबके जेहन में आ रहे हैं.

 

इस फार्मूले से होता है सीटों का बंटवारा

आम तौर पर गठबंधन को लेकर जो फॉर्मूला तय होता है उसमें जिस सीट पर जिसका कब्जा होता है वो तो उसी को मिलती है. फिर देखा जाता है कि पिछले चुनाव में किस सीट पर उस राजनीतिक दल का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर था. इस लिहाज से यदि 2014 के आम चुनावों को आधार पर बनाया जाए तो बसपा 34 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी और सपा 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी. वहीं 80 लोकसभा सीटों में बाकी की बची सीटों को वोट प्रतिशत के आधार पर बांटा जा सकता है.

 

1. जो समझौता होना है उसके अनुसार राष्ट्रीय लोक दल के लिए 3 सीटें, कांग्रेस के लिए 2 सीटें और सहयोगी दलों के लिए 5 और सीटें रिजर्व में रखी जाएंगी. फिलहाल सिर्फ 35-35 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया जाएगा. दोनों दल अभी आरएलडी से बातचीत का रास्ता बंद नहीं करना चाहते.

 

2. संभावना है कि दोनों दल हर मंडल में कम से कम 2 सीट पर लड़ेंगे, ताकि किसी इलाके में एक ही पार्टी का वर्चस्व न हो और दूसरी पार्टी का सफाया नहीं हो. इसके लिए लोकसभा चुनाव में नंबर 2 रहने के नियम में की छूट दी जाएगी.

 

3. प्रत्याशी चुनने में दोनों दल एक दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखेंगे. हाल-फिलहाल में पार्टी बदलने वाले या फिर मायावती और अखिलेश यादव के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने वालों का टिकट कट सकता है.

 

4. सुहलदेव समाज पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल), कौमी एकता दल जैसे छोटे दलों से बातचीत जारी रहने की संभावना है.

 

5. वाराणसी सीट पर मोदी के खिलाफ किसी तीसरे दल के मजबूत उम्मीदवार का समर्थन करने पर विचार किया जा सकता है.

 

6. समाजवादी पार्टी की ओर से पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी की ओर से पार्टी सुप्रीमो मायावती की अनुमति के बिना मीडिया में कुछ भी बोलने पर सख्ती होगी. मुलायम सिंह यादव को गठबंधन के फैसलों से दूर रखा जा सकता है.

 

7. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावाती 50 से ज्यादा चुनावी सभाएं साथ कर सकते हैं. पार्टी के और कोई नेता बिना हाईकमान की अनुमति के मंच साझा नहीं करेंगे.

 

इन मुस्लिम सीटों पर फंस सकता है पेंच 

मुस्लिम आबादी के लिहाज से रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बिजनौर और अमरोहा ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी 35 से 50 फीसदी के बीच है. वहीं मेरठ, कैराना, बरेली, मुजफ्फरनगर, संभल, डुमरियागंज, बहराइच, कैसरगंज, लखनऊ, शाहजहांपुर और बाराबंकी में मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज्यादा और 35 फीसदी से कम है. हाल के दिनों में बसपा ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना अल्पसंख्यक आधार बढ़ाया है. लिहाजा, यही वो सीटें हैं जिन्हें लेकर पेच फंस सकता है.

 

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