सबरीमाला विवाद: जानें कौन हैं भगवान अयप्पा और क्या है मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की वजह

केरल के सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं के प्रवेश के साथ ही मंदिर की 800 साल पुरानी परंपरा आखिरकार टूट ही गयी है, जिसके बाद से सबरीमाला एक फिर चर्चा में है. सबरीमाला में भगवान अयप्पा का मंदिर है. आइये जानते हैं भगवान अयप्पा और मंदिर से जुड़ी पूरी कहानी..

 

जानें कौन हैं भगवान अयप्पा 

हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान अयप्पा को लेकर कई कथाएं हैं, लेकिन उनमें सबसे चर्चित कहानी ये है कि जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं.  दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया. इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ. भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है. हालांकि इनके मंदिर देश के कई स्थानों पर हैं जो दक्षिण भारतीय शैली में ही निर्मित होते हैं.

 

जानें क्यों कहा जाता है अयप्पा को मणिकंदन 

भगवान अयप्पा को मणिकंदन भी कहा जाता है. यहां मणि का अर्थ सोने की घंटी से है और कंदन का अर्थ होता है गर्दन. अर्थात गले में मणि धारण करनेवाले भगवान. इन्हें इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इनके माता-पिता शिव और मोहिनी ने इनके गले में एक सोने की घंटी बांधी थी.

 

राजा राजशेखर ने लिया था गोद 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा के जन्म के बाद मोहिनी बने भगवान विष्णु और शिवजी ने इनके गले में स्वर्ण कंठिका पहनाकर इन्हें पंपा नदी के किनारे पर रख दिया था. तब पंडालम के राजा राजशेखर ने इन्हें अपना लिया और पुत्र की तरह इनका लालन- पालन किया. राजा राजशेखर संतानहीन थे. वर्तमान समय में पंडालम केरल राज्य का एक शहर है.

 

राजा की रानी करती थीं अयप्पा से ईर्ष्या

जब अयप्पा राजा के महल में रहने लगे, उसके कुछ समय बाद रानी ने भी एक पुत्र को जन्म दिया. अपना पुत्र हो जाने के बाद रानी का व्यवहार दत्तक पुत्र अयप्पा के लिए बदल गया. राजा राजशेखर, अयप्पा के प्रति अपनी रानी के दुर्व्यवहार को समझते थे. इसके लिए उन्होंने अयप्पा से माफी मांगी.

 

रानी ने रची अयप्पा को मरवाने की साजिश 

रानी को इस बात का डर था कि राजा अपने दत्तक पुत्र अयप्पा को बहुत स्नेह करते हैं, कहीं वे अपनी राजगद्दी उसे ही न दे दें. ऐसे में रानी ने बीमारी का नाटक किया और अयप्पा तक सूचना पहुंचाई कि वह बाघिन का दूध पीकर ही ठीक हो सकती हैं. उनकी चाल वन में रह रही राक्षसी महिषी द्वारा अयप्पा की हत्या कराने की थी. अयप्पा अपनी माता के लिए बाघिन का दूध लेने वन में गए. जब वहां महिषी ने उन्हें मारना चाहा तो अयप्पा ने उसका वध कर दिया और बाघिन का दूध नहीं लाए बल्कि बाघिन की सवारी करते हुए, मां के लिए बाघिन ही ले आए.

 

ऐसे हुआ सबरीमाला मंदिर का निर्माण 

राजा राजशेखर ने सबरी में मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर निर्माण के बाद भगवान परशुराम ने अयप्पा की मूरत का निर्माण किया और मकर संक्रांति के पावन पर्व पर उस मूरत को मंदिर में स्थापित किया. इस तरह भगवान अयप्पा का मंदिर बनकर तैयार हुआ और तब से भगवान के इस रूप की पूजा हो रही है और मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है.

 

तो इसलिए भगवान विष्णु और शिव ने रची थी लीला 

मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के बाद जीवित बची उसकी बहन महिषी ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की. इस तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने वर मांगा कि उसकी मृत्यु केवल शिव और विष्णु भगवान के पुत्र के द्वारा ही हो, ब्रह्मांड में और कोई उसकी मृत्यु न कर सके. ऐसा वर उसने इसलिए मांगा क्योंकि ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देने से मना कर दिया था. शिव और विष्णु का पुत्र परिकल्ना से परे था, इसलिए राक्षसी ने यह इच्छा रखी. वरदान मिलते ही उसने उत्पात मचाना शुरू कर दिया. तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा. ताकि भक्तों का संकट मिटा सकें.

 

मंदिर में महिलाओं को प्रवेश न देने के पीछे की वजह 
सबरीमाला मंदिर करीब 800 साल से अस्तित्व में है और इसमें महिलाओं के प्रवेश पर विवाद भी दशकों पुराना है. वजह यह है कि भगवान अयप्पा नित्य ब्रह्मचारी माने जाते हैं, जिसकी वजह से उनके मंदिर में ऐसी महिलाओं का आना मना है, जो मां बन सकती हैं. ऐसी महिलाओं की उम्र 10 से 50 साल निर्धारित की है. माना गया कि इस उम्र की महिलाएं पीरियड्स होने की वजह से शुद्ध नहीं रह सकतीं और भगवान के पास बिना शुद्ध हुए नहीं आया जा सकता.

 

मंदिर जाने के लिए ऐसे होते हैं शुद्ध 
भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए 41 दिन पहले से तैयारी करनी होती है. 41 दिनों की इस प्रक्रिया को मंडल व्रतम कहा जाता है. इसमें श्रद्धालुओं को रोज़ाना दो बार नहाना होता है, सेक्स नहीं करना होता है, मांस नहीं खाना होता है, अपशब्द नहीं बोलने होते हैं, काले -नीले कपड़े पहनने होते हैं, दाढ़ी- बाल- नाखून नहीं कटा सकते और शादी- जन्मदिन जैसे आयोजनों में शरीक नहीं हो सकते. मंदिर जाते समय सिर पर पल्लिकेट्टू होना अनिवार्य है. पल्लिकेट्टू एक छोटा झोलेनुमा कपड़ा होता है, जिसमें गुड़, नारियल और चावल जैसा प्रसाद का सामान होता है.

 

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