‘रामभद्राचार्य कोई संत नहीं, ये सब उनके कर्मों का फल…’, चंद्रशेखर आजाद का तीखा हमला

अयोध्या (Ayodhya) में आयोजित 16वें प्रबुद्ध सम्मेलन, जो फॉरएवर लॉन में हुआ, के दौरान नगीना के सांसद और आज़ाद समाज पार्टी (Azaad Samaj Party) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद रावण (Chandrashekhar Azad Ravana) ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक टिप्पणी की। उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य पर तीखा हमला करते हुए कहा कि वे उन्हें संत नहीं मानते। आज़ाद ने कहा कि सनातन परंपरा का यह मूल मंत्र है कि आपके कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। उन्होंने यह भी व्यक्त किया कि रामभद्राचार्य की दृष्टिहीनता उनके द्वारा किए गए कर्मों का फल है, और इसमें उनका कोई दोष नहीं है।

संविधान को सर्वोपरि बताते हुए संतों को दी चुनौती

रावण ने आरोप लगाया है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य संविधान और डॉ. भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों को स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा कि अगर कोई अंबेडकर के विचारों को नहीं मानता, तो हमें भी उस व्यक्ति को मानने की आवश्यकता नहीं है। उनके अनुसार, देश संविधान के आधार पर चलता है, जिसे प्रधानमंत्री भी सम्मान के साथ अपनाते हैं। यदि किसी को संविधान से समस्या है, तो उन्हें इस देश में रहने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। रावण ने अयोध्या के कुछ संतों द्वारा उनके प्रवेश पर आपत्ति उठाने को खारिज करते हुए कहा, मैं यहाँ अयोध्या की भूमि पर उपस्थित हूं, जो लोग आपत्ति रखते हैं, उन्हें सामने आना चाहिए।

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2027 चुनाव को लेकर बड़ी घोषणा

सभा में जुटी विशाल भीड़ को देखकर चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर एक महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने बताया कि आज़ाद समाज पार्टी पिछड़े वर्ग की राजनीति को एक नई दिशा में ले जाएगी और आने वाले चुनावों में 50% सीटें पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को आवंटित की जाएंगी। इसके अलावा, उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अगले 17-18 महीनों में गाँव-गाँव जाकर पार्टी के विचारों का प्रचार करें और बदलाव की दिशा में संघर्ष करें।

 गरीबों के शोषण का आरोप

मीडिया से बातचीत के दौरान चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन के विस्तार के संबंध में सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के तहत सबसे अधिक अनुसूचित जाति के लोगों की ज़मीनें जबरन अधिग्रहित की गईं। उन्होंने उल्लेख किया कि 150 से अधिक मकान ध्वस्त किए गए, और न तो मुआवजा दिया गया और न ही पुनर्वास की कोई व्यवस्था की गई। रावण ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार गरीबों की भूमि को बहुत कम कीमत पर उद्योगपतियों को बेचने का काम कर रही है, जिसे उन्होंने ‘भ्रष्टाचार और शोषण की पराकाष्ठा’ के रूप है ।

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