प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा का जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) ने स्वागत किया है। उन्होंने किसानों को बधाई देते हुए कहा कि इसके लिए महान बलिदान दिया गया। किसानों को बांटने की साजिशें भी रची गईं, लेकिन देश के किसान अपने रुख पर अडिग रहे। इसके साथ ही मौलाना अरशद मदनी ने सरकार से कृषि कानूनों की तरह ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी वापस लेने की मांग की है।
मौलाना अरशद मदनी ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि एक बार फिर सच सामने आया है कि अगर किसी जायज मकसद के लिए ईमानदारी और धैर्य से आंदोलन चलाया जाए तो उसमें सफलता जरूर मिलती है। यह निर्विवाद तथ्य है कि किसानों ने सीएए के खिलाफ आंदोलन के माध्यम से इतना मजबूत आंदोलन पाया जब महिलाएं भी न्याय के लिए दिन रात सड़कों पर बैठी रहीं। आंदोलन में शामिल होने वालों पर घोर अत्याचार किया गया और कई झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार किए गए, लेकिन आंदोलन को तोड़ा या दबाया नहीं जा सका।
मदनी ने कहा कि कृषि कानून वापसी के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र और लोगों की शक्ति सर्वोपरि है। जो लोग सोचते हैं कि सरकार और संसद अधिक शक्तिशाली हैं, वह बिल्कुल गलत हैं। जनता ने एक बार फिर किसानों के रूप में अपनी ताकत का परिचय दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन की सफलता यह भी सीख देती है कि किसी भी जन आंदोलन को जबरदस्ती कुचला नहीं जा सकता है।
मौलाना मदनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देस की संरचना लोकतांत्रिक है, इसलिए यह अपनी जगह पर सही है। इसलिए अब प्रधानमंत्री को उन कानूनों पर ध्यान देना चाहिए जो मुसलमानों के संबंध में लाए गए हैं। कृषि कानूनों की तरह ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी वापस लेना चाहिए।